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ज्ञान समाधि
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नहीं जानता यह क्यों है, पर है यह ऐसा ही । क्यों है यह भी मैं नहीं जानता। पर है—यह सत्य है, इसे जानता हूं। जो सत्य सामने आ रहा है, उसी को मैं कह रहा हूं।' ___सत्य के लिए समर्पित होता है ज्ञान योगी। उसके मन में कोई पूर्वाग्रह नहीं होता कि कल क्या माना जाता था, आज क्या माना जाता है या परसों क्या माना जाएगा? उसके मन में यह विकल्प ही नहीं उठता कि कल मैंने क्या कहा था ? आज क्या कह रहा हूं ? तात्त्विक आदमी के मन में यह विचिकित्सा हो सकती है कि कल मैंने इस सन्दर्भ में यह कहा था तो आज मैं उसी सन्दर्भ में ऐसे कैसे कह सकता हूं? किन्तु दो प्रकार के व्यक्तियों के मन में यह विचिकित्सा नहीं होती-एक तो राजनीतिक व्यक्ति के मन में और दूसरे सत्य-शोधक के मन में । कुशल राजनीतिज्ञ वह माना जाता है जो सुबह एक बात कहे और दोपहर में दूसरी बात कहे और यह भी सिद्ध कर दे कि उस समय वह बात ठीक थी तथा अब यह बात ठीक है। सत्य-शोधक भी वही हो सकता है जो सुबह एक बात कहे और दोपहर में दूसरी। किन्तु उसके सामने कोई तर्क नहीं होता । वह कहेगा-'भाई ! मुझे उस समय वह सत्य लग रहा था और अब यह सत्य लग रहा है ?' ___श्रीमज्जयाचार्य सत्य-संधित्सु थे, योगी थे, ज्ञानयोगी थे, ध्यान-योगी थे । उनसे पूछा गया-'आपके पूर्वज आचार्य भिक्षु ऐसा कहते थे और आप ऐसा कह रहे हैं। या तो वे सत्य थे या आप ?' उन्होंने कहा-'उनका व्यवहार उनके पास था और हमारा व्यवहार हमारे पास । वे अपने शुद्ध ज्ञान से अपना व्यवहार चलाते थे और हम अपने शुद्ध ज्ञान से अपना व्यवहार चलाते हैं । न वे असत्य थे और न हम असत्य हैं। उनको वह सत्य लग रहा था इसलिए उसका आचरण किया, असत्य जानकर नहीं। हमको यह सत्य लग रहा है इसलिए इसका आचरण करते हैं, असत्य जानकर नहीं। असत्य का आचरण न वे करते थे, न हम करते हैं। दोनों सत्य हैं। कोई असत्य नहीं है । सत्य-शोधक के लिए अत्यन्त आवश्यक है यह । क्योंकि या तो हम यह मान लें कि सत्य के सारे पर्याय उद्घाटित हो गए, अब कोई पर्याय शेष नहीं है । केवल ज्ञानी ही कह सकता है क्योंकि उसके सामने सत्य के सारे पर्याय उद्घाटित हैं । हमारे सामने सारे पर्याय उद्घाटित होने बाकी हैं। इस स्थिति में हम नहीं कह सकते कि जो आज तक जाना गया वही सत्य है और जो आगे जाना जायेगा वह सत्य नहीं होगा। ज्ञान-योगी सत्य के प्रति