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तप समाधि
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साधना की वह अजीब पद्धति है कि बाहर के शरीर को सुखा डालो। यह बाहर के शरीर को सुखाता है, ताप देता है, तपाता है, शोषण करता है, इसलिए बाह्य तप है । यह क्यों आवश्यक है ? इससे समाधि कैसे प्राप्त होगी? यदि आपका शरीर ठीक है, पर्याप्त मांस और रक्त है तो वह समाधि का साधन हो सकता है। शरीर स्वस्थ है तो शान्ति मिलती है, समाधि मिलती है । शरीर सूख रहा है, तप रहा है तो बाह्य तप समाधि कैसे बन सकता है ? वह तो असमाधि बन जाएगा। यह एक शरीर-शास्त्रीय प्रश्न है। हमारे सामने फिर इसे समाधि क्यों कहा जाए ? पचास दिन तक यदि भोजन न करें तो शरीर अवश्य सूखेगा। ऐसी स्थिति में इसको तप समाधि कैसे कहें ? इस बिन्दु पर हम जब आते हैं तब कुछ नयी दिशाएं उद्घाटित होती हैं। ____ भोजन के दो कार्य हैं-शक्ति देना और ताप-ऊष्मा पैदा करना । भोजन केवल यही तो नहीं देता । वह और भी कुछ देता है । वह शरीर में सक्रियता पैदा कर उत्तेजना देता है । शरीर में जितने काम-केन्द्र, वासनाकेन्द्र, आवेग-केन्द्र और स्मृति-केन्द्र हैं, वे सारे के सारे उत्तेजित होते हैं भोजन को प्राप्त कर । भोजन के अभाव में ये सारे केन्द्र शिथिल हो जाते हैं क्योंकि उन्हें अब सहयोग नहीं मिलता । सहयोग का रास्ता कट जाता है । सेना को जब रसद नहीं मिलती, वह आगे नहीं बढ़ पाती। शत्रु-सेना सबसे पहले रसद के मार्ग को काट देती है । उपवास रसद के मार्ग को काट देता है। जो पहुंच रहा है, जिससे शक्ति मिल रही है, उसे रोक देता है । उपवास किया, रस नहीं मिला तो कोई सक्रियता नहीं, कोई उत्तेजना नहीं। उस स्थिति में इन्द्रियां शान्त, मन शान्त, और सब कुछ ढीला-ढाला। शक्ति का स्रोत सूखने लग जाता है क्योंकि उसे कुछ प्राप्त नहीं हो रहा है। इस प्रक्रिया के द्वारा यह होता है कि उत्तेजना या सक्रियता के जो साधन हैं, उपाय हैं, निमित्त हैं, उनको हम समाप्त कर देते हैं। किन्तु पूरा समाप्त नहीं कर पाते । यह पूरी प्रक्रिया नहीं है । केवल मार्ग में जो व्यवधान डालते थे, उन्हें शिथिल बना डालते हैं। बाह्य तप में तीन बातें मुख्य हैं
१. उपवास या मिताहार । २. आसन आदि (कायक्लेश)। ३. प्रतिसंलीनता। आहार का विसर्जन, परित्याग, एक शब्द में उपवास, इसलिए कि जिससे