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महावीर की साधना का रहस्य वह अज्ञानतप इसलिए है कि वह केवल स्थूल शरीर को तपाता है, कर्म शरीर को नहीं। जहां हिंसा हुई वहां कर्म शरीर को ताकत मिली, वह तपा नहीं। कर्म शरीर को जहां बल मिलता है, महावीर उसे तप नहीं मानते । चाहे तुम कष्ट भी सहो पर उसका परिणाम पहुंचना चाहिए कर्म शरीर तक । तब यह तप होगा अन्यथा नहीं। यदि कष्ट तो हुआ पर उसका परिणाम कर्म शरीर तक नहीं पहुंचा, कर्म शरीर प्रकंपित नहीं हुआ तो वह तप नहीं होगा, कष्ट मात्र होगा । बाल तप और पंडिततप, अज्ञानतप और ज्ञानतप के बीच यह स्पष्ट भेद-रेखा है कि जो कर्म शरीर को तपाए वह पंडिततप और जो केवल स्थूल शरीर को ही तपाए, कष्ट दे, वह बालतप । ____जो कर्म शरीर को शक्ति पहुंचाए वह स्थूल शरीर को कष्ट देने पर भी तप नहीं होता। वह केवल अज्ञानपूर्ण कष्ट है। उसे अज्ञान का कष्ट कहा जाना चाहिए।
जो ताप कर्म शरीर तक प्रभाव डाले वह होता है वास्तव में तप । कष्ट देना धर्म नहीं है। शरीर को कष्ट देना तप नहीं है । तप वह है जो स्यूल शरीर को तपाने के साथ-साथ कर्म शरीर को भी तपाए । जहां कर्म शरीर तक ताप नहीं पहुंचता तो वह तप है ही नहीं। कर्म शरीर को तपाने में कष्ट होना जरूरी नहीं है । कष्ट हो भी सकता है और नहीं भी। बिना कष्ट के भी हम उसे तपा सकते हैं, सक्रिय कर सकते हैं । कष्ट हो भी और ताप उस तक न पहुंचे तो वह तप की प्रक्रिया नहीं है, यथार्थ तप की प्रक्रिया नहीं है । इसलिए यह धारणा स्पष्ट होनी चाहिए कि कष्ट होना तप नहीं है, किन्तु कष्ट होने पर उसको सहा जाए और ताप कर्म शरीर तक पहुंच जाए, तब तप होगा। ___ बाह्य तप के विषय में हमारी धारणा स्पष्ट होनी चाहिए । बाह्य तप के द्वारा हम स्थूल शरीर को तपाना नहीं चाहते । यह हमारा उद्देश्य नहीं है। हमारा उद्देश्य है-कर्म शरीर को परितप्त करना, उसे झकझोर देना, धुन डालना, प्रकंपति कर देना । यह होता है तब बाहर का कष्ट भी तप बन जाता है।
बाह्य तप की प्रक्रिया में सभी शरीर-स्थूल शरीर, प्राण शरीर और कर्म शरीर, और इन शरीरों को मिलने वाले बाहर के सारे साधन तथा उपकरण चाहे भोजन, मकान, पुद्गल, हवा, सुगन्ध, दुर्गन्ध, खट्टे-मीठे रस, सुन्दर और भद्दे रूप, कोमल और कठोर स्पर्श-ये सारे के सारे मिलकर तप की