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महावीर की साधना का रहस्य
तापमय है । उसी में से प्राण पैदा होता है । योग के आचार्य इसे 'प्राण-शरीर' कहते हैं । पश्चिम के लोगों ने इसे इथेरिक बाडी (Etheric Body) कहा है। इसके आगे है-कार्मण शरीर, कर्म शरीर । यह सब का मूल है । जहां से शक्ति मिलती है तैजस शरीर को, जहां से शक्ति मिलती है स्थूल शरीर को, वह है कर्म शरीर । सारी शक्ति का संचालन करने वाला है कर्म शरीर । उसे वासना शरीर या मानस शरीर भी कहा जाता है। थियोसोफिस्ट इसे ऐस्ट्रल बॉडी (Astral Body) मानते हैं हमारे ये तीन शरीर.
१. स्थूल शरीर-सात धातुओं से निष्पन्न शरीर । २. तैजस शरीर या प्राण शरीर । ३. कर्म शरीर या वासना शरीर-सारी घटनाओं का मूल शरीर ।
शरीर में बीमारी हुई । हम कहते हैं—आंखें दुःख रही हैं, पेट में दर्द है, घुटने और छाती में दर्द है । क्या बीमारी पैदा होती है आंख में ? क्या पेट में दर्द होता है ? क्या घुटने और छाती में दर्द होता है ? कभी नहीं। यहां बीमारी पैदा नहीं होती, प्रकट होती है । बल्ब में रोशनी पैदा होती है ? बिजली पैदा दूसरी जगह होती है किन्तु प्रकट होती है बल्ब में। इसी प्रकार रोग स्थूल शरीर में, उसके विभिन्न अवयवों में प्रकट होता है किन्तु उत्पन्न होता है कर्म शरीर में । रोग स्थूल शरीर में दिखाई देता है आज, किन्तु वह कर्म शरीर में पहले ही बन जाता है । न जाने कब से । आजकल तो विशेष संवेदनशील कैमरे भी बन गए हैं जिनसे पता लग सकता है कि सूक्ष्म शरीर में रोग कब-कैसे हुआ था। बाहर के स्थूल शरीर में वह कब प्रकट होगी, यह भी पता लग जाता है। योगशास्त्र में 'कोष' की चर्चा है। स्थूल शरीर में दो कोष माने जाते हैं-अन्नमयकोष और प्राणमय कोष । सूक्ष्म शरीर में तीन कोष हैं—मनोमय कोष, विज्ञानमयकोष और आनन्दमयकोष । ये पांच कोष हैं । कर्म आठ हैं । कर्म शरीर में विज्ञानमयकोष भी है, आनन्दमयकोष भी है, और शक्ति का कोष भी है ।
योग की दो पद्धतियां हैं
१. स्थूल शरीर को प्रभावित करना। स्थूल शरीर में प्रकम्पन पैदा कर सूक्ष्म शरीर को सक्रिय बनाना।
२. स्थूल शरीर को छोड़कर सीधा सूक्ष्म शरीर को सक्रिय बनाना, प्रकंपित करना।