________________
ज्ञान समाधि
आज मैं उस समाधि की चर्चा करूंगा जो सबसे सरल है, पर है सबसे कठिन । ज्ञान समाधि सबसे सरल इसलिए है कि उसमें कुछ करना नहीं होता । उसमें न आसन करना होता है, न प्राणायाम और न ध्यान । कुछ भी करने की जरूरत नहीं है । भक्ति और पूजा करने की भी जरूरत नहीं है । कर्म और उपासना करने की भी जरूरत नहीं है । इसमें कर्मयोग और भक्तियोग — दोनों छूट जाते हैं । हठयोग भी छूट जाता है । कुछ भी करने की जरूरत नहीं है । जिसमें कुछ भी करने की जरूरत नहीं वह सबसे सरल होता है । किंतु जिसमें कुछ भी करने की जरूरत नहीं होती वह सबसे कठिन भी होता है । ज्ञानयोग में कुछ भी करना नहीं होता, पर यह करना बड़ा कठिन है । ज्ञानयोगी वही बन सकता है जो संन्यासी की अच्छी भूमिका पर पहुंच जाता है । यह कठिन क्यों हैं — इसे स्पष्ट करना है । हम जो करते हैं, जो घटना घटित होती है, हम जानते हैं- इन दोनों को मिला देता है साधारण आदमी । एक घटना घटित होती है, व्यक्ति उसे अपने ज्ञान से जोड़ देता है ।
एक आदमी किसी गांव में गया । पूर्व परिचित के यहां ठहरा । देखा, जिस घर में ठहरा है, वह मित्र अत्यन्त उदास नजर आ रहा है। उसने पूछा - 'मित्र ! जब मैं पहले आया था, तब तुम बहुत प्रसन्न थे । आज उदास क्यों ?' वह बोला — ' क्या सही बताऊं ? बात यह है, पहले इस गांव में दुमंजिला मकान एक मेरा ही था। मैं बहुत प्रसन्न रहता था। अब मेरे पड़ोसी
एक सुन्दर तिमंजिला मकान बना लिया है । इसलिए हर वक्त मुझे बेचैनी सताती रहती है । वह तिमंजिला मकान मेरी स्मृति से ओझल ही नहीं होता ।' अब आप देखें, घटना कहां घटित हुई और परिणाम किसमें अभियन्क्त हुआ । एक तिमंजिला मकान बन गया, घटना घटित हो गयी । जानते सब हैं, पर सबको कोई कष्ट नहीं होता । कष्ट उसी को होता है जो ज्ञान को घटना के साथ जोड़ देता है । एक द्वेष का भाव संचित कर लिया और उसे अपने ज्ञान से जोड़ दिया । यह है अज्ञान ।
हम ज्ञान किसको कहें ? ज्ञान वह होता है जहां केवल जानना होता है,