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विनय समाधि
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प्रकार से स्वीकार करे । कितनी बड़ी बात है। उसे घटदासी की बात को ज्ञानी साधु तब ही स्वीकार कर सकता है जब उसका अहं विलीन हो जाता है । जब अहं का सांप फुफकारता है, तब स्वीकार की बात सामने ही नहीं आती । चेतना के स्तर पर लाघव का यह प्रयोग चलना चाहिए। साधक को निरन्तर यह सोचना चाहिए कि मैं हल्का हूं। मेरे भीतर कुछ नहीं है, कुछ भी नहीं है। ___ शारीरिक स्तर पर समूचे कषाय को कम करने के लिए तथा अहं को नष्ट करने के लिए श्वास की मन्दता का प्रयोग करना अपेक्षित है। हमारी साधना में मंद श्वास के प्रयोग का बड़ा महत्त्व है । हम श्वास को जितना मंद करेंगे उतनी ही हमारी साधना सफल होगी, विकसित होगी। यह स्थायी सूत्र है दो-चार दिन का नहीं है । यह निरन्तर चलने वाला सूत्र है । साधना की दृष्टि से चिन्तन करने पर पता चल जाता है कि जब कोई आवेश उतरता है तो वह सबसे पहले श्वास पर उतरता है। हम सामान्यतः एक मिनट में १५-१८ श्वास लेते हैं । क्रोध आते ही श्वास की मात्रा बढ़ जायेगी-२०-२५ हो जाएगी। वासना आते ही श्वास की मात्रा बढ़ जाएगी। आवेग या आवेश आते ही श्वास तेज चलने लग जाएगा । यदि हम श्वास की मात्रा को पहले ही घटा दें तो कषाय या आवेश को उतरने का मौका ही नहीं मिलेगा । श्वास की मंदता के लिए अभ्यास करना होगा। अभ्यास के पहले दिन साधक ऐसा करे कि वह पन्द्रह सेकण्ड में एक श्वास ले, एक मिनट में चार श्वास ले-आठ सेकण्ड में श्वास और आठ सेकण्ड में निःश्वास । वह पांच-दस मिनट तक यह अभ्यास करे। दस-बीस दिन ऐसा करे, फिर आगे बढ़े। धीरे-धीरे इस स्थिति में आ जाए कि एक मिनट में एक श्वास । इस स्थिति तक पहुंचने में एक वर्ष भी लग सकता है। दो वर्ष भी लग सकते हैं, और अधिक समय भी लग सकता है । अभ्यास की निरन्तरता होने पर यह अभ्यास फल देने लगता है। पर एक बात ध्यान में रहे। बल-प्रयोग के द्वारा सिद्धि प्राप्त करने का प्रयत्न न हो । स्वाभाविक रूप से जो घटित होता है, उसे घटित होने दें। एक मिनट में एक श्वास-निश्वास की स्थिति यदि दिन में एक-दो घंटे तक हो जाए तो फिर आप सब इन खतरों से बाहर हो जाएंगे । तब न क्रोध का प्रश्न रहेगा और न आवेश या आवेग का प्रश्न ही उभरेगा। अहंकार का प्रश्न भी समाप्त हो जाएगा। यद्यपि यह स्थिति बहुत आगे की है, फिर भी यदि इसका अभ्यास प्रारम्भ हो जाता है तो दिशा