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महावीर की साधना का रहस्य
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लड़के बन गए ।
अब आप देखिए कि लड़के के आचरण से ऋषि ने निर्णय कर लिया कि वह 'सावलक' और 'कौशला' का पुत्र नहीं हो सकता। उनकी जो परम्परा है, वह उद्दण्डता की परम्परा नहीं है । उनकी परम्परा क्रूरता की परम्परा नहीं है । उनकी परम्परा शिकारी की परम्परा नहीं है । और उस परम्परा में इस प्रकार का आचरण नहीं आ सकता । कहीं-न-कहीं वर्णसंकर हुआ । कहीं-न-कहीं कोई गड़बड़ है और कहीं-न-कहीं कोई दोष है । बात पकड़ ली गई वंश-परम्परा के आधार पर और आखिर में वह सही निकली। आप भारतीय साहित्य में देखेंगे कि ऐसी पचासों घटनाएं हैं। एक बहुत बड़ा कवि था । राजा उसे समस्यापूर्ति करने देता तो वह महान् कवि न केवल समस्यापूर्ति करता, बल्कि बहुत सारे रहस्यों को भी उद्घाटित कर देता। एक बार राजा ने उससे अपने बारे में पूछा । कवि ने कहा - 'महाराज ! आप अपने बारे में मत पूछिए, मत पूछिए ।' राजा ने कहा - 'नहीं, बताना ही होगा । " कवि ने कहा- आप दासी के लड़के हैं ।' राजा को क्रोध आ गया । उसने हैरान होकर कहा - 'यह कैसे हो सकता है ?' कवि ने कहा- 'मैं जो कुछ कहता हूं उसमें अन्तर नहीं हो सकता ।' अब भला राजा को यह कह दे कि तुम राजपुत्र नहीं हो, दासी पुत्र हो, कितनी भयंकर बात थी । आखिर राजा को परीक्षा करनी पड़ी। उसने परीक्षा की और उसके बाद यह सही निकला कि वह दासी का ही पुत्र है । राजा को बहुत आश्चर्य हुआ । उसने सोचा कि इस व्यक्ति ने कैसे बताया कि मैं दासी का बेटा हूं। उसने कवि से पूछा'कवि ! तुम बताओ, यह बात तुमने कैसे पकड़ी ?' कवि ने कहा, 'पकड़ी क्या, तुम्हारे स्वभाव से मैंने देख लिया कि तुमने जो भोजन दिया, उसमें क्या दिया ? आटा, तेल और थोड़ा सा घी । अगर तुम राजपुत्र होते तो इतने बड़े विद्वान् को इस प्रकार का भोजन नहीं देते । यह तुम्हारी कृपणता बतला रही है कि तुम दासी के पुत्र हो ।' सचमुच वही निकला । आप देखिए कि मनुष्य के स्वभाव के आधार पर उसके वंश को जाना जा सकता है, वंश का निर्णय किया जा सकता है । यह पैतृक परम्परा हमारे चरित्र-निर्माण में बहुत बड़ा हाथ बंटाती है ।
चरित्र-निर्माण का एक हेतु है— परम्परा । जिस प्रकार की विचार परम्परा में व्यक्ति जन्म लेता है, उस प्रकार के चरित्र का निर्माण हो जाता है । तेरापंथ की परम्परा में उन्होंने जन्म लिया है, वे वंदना करेंगे तो घुटने टेककर