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महावीर की साधना का रहस्य
परिवर्तन आएगा और आपके दृष्टिकोण में परिवर्तन आएगा और वस्तु-जगत् के प्रति आपका सारा का सारा दृष्टिकोण बदल जाएगा । आपको देखने की दूसरी दृष्टि मिल जाएगी, आप तब वस्तु को मात्र वस्तु की दृष्टि से देख सकेंगे, और सारी दृष्टियां उससे हट जाएंगी। यह है आत्म-विकास का मार्ग, जागरूकता का मार्ग ।
हर साधक को यह ध्यान में रखना चाहिए कि जो भी प्रयोग चले, उसमें आंतरिक जागरूकता बराबर बनी रहे और जिसको यह अनुभव हो कि इस प्रयोग से आंतरिक जागरूकता समाप्त होती है, केवल नींद या तन्द्रा की अवस्था का अनुभव होता है तो वह हमें बताए । हम उस प्रयोग को भी बदल देंगे । उसका कोई लाभ नहीं है । क्योंकि मैं यह अनुभव करता हूं कि विद्युत्यन्त्रों के द्वारा भी ऐसी स्थिति का निर्माण किया जा सकता है। आजकल हिप्नोटिज्म करने के लिए एक ऐसे यन्त्र का आविष्कार हुआ है, जिसमें से विद्युत् की धारा निकलती है, सातों रंग उसमें से निकलते हैं । उसके सामने आप जाकर बैठ जाइए । पांच-सात मिनट तक आप उसे अपलक देखते रहिए, आप बिलकुल मूर्छा में चले जाएंगे। शून्यता में चले जाएंगे । जा सकते हैं । विद्युत् के द्वारा जा सकते हैं। बिजली के ऐसे आहनन होते हैं कि पांच-दस मिनट में बिलकुल आप बेभान हो जाएंगे। पागल लोगों में विचार-प्रसक्ति या संस्कार-प्रसक्ति हो जाती है। एक समझदार आदमी में और एक पागल आदमी में अन्तर क्या होता है ? इतना ही अन्तर होता है कि एक समझदार आदमी के मन में विचार आता है और चला जाता है। पागल आदमी ने देखा कि मोटर आ रही है। विचार की प्रसक्ति हो गई । मोटर आ रही है, मोटर आ रही है, यह विचार छूटना उससे मुश्किल हो जाता है । इस विचार को यह निकाल नहीं सकता । जो विचार आए उसे तत्काल निकालने में समर्थ हो, वह समझदार आदमी होता है। जो विचार आए उसे निकाल न सके, उसी में लगातार लग गए, वह होता है पागल । यह मनोवैज्ञानिक तथ्य है कि पागल में संस्कार-प्रसक्ति होती है। जो आदमी मानसिक दृष्टि से स्वस्थ होता है, उसमें विचार-प्रसक्ति नहीं होती। वह विचार को बदल सकता है। जब चाहे तब बदल सकता है । उसमें क्षमता होती है । जिसमें यह क्षमता नष्ट हो जाती है, वह पागल हो जाता है।
यह विचार की प्रसक्ति ही सारी कठिनाई उपस्थित करती है । तो फिर मानसिक चिकित्सक पागल के लिए क्या करते हैं ? वे यन्त्र के द्वारा, विद्युत्