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सामायिक समाधि
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नहीं, मन के विकल्पों को छोड़ा नहीं । विकल्प जब तक रहेगा वह उसे पकड़ेगा । सामायिक समाधि तब प्राप्त होती है जब हम मन को निर्विकल्प कर देते हैं । आप यदि ध्यान दें तो देखेंगे कि अशान्ति और विकल्प साथ-साथ जन्म लेते हैं। अशान्ति कोई अलग वस्तु नहीं है । अशान्ति और विकल्प एक साथ पैदा होते हैं । थोड़ा विकल्प बढ़ता है तो अशान्ति भी थोड़ी मात्रा में बढ़ जाती है । इस अवस्था में कुछ भी स्पष्ट रूप से पता नहीं चलता। जब विकल्प तीव्र होता है तब अशान्ति की मात्रा भी तीव्र हो जाती है। विकल्प की मात्रा के साथ-साथ अशान्ति की मात्रा भी बढ़ती जाती है। तब वह अखरने लगता है। वह अशान्ति को मिटाना चाहता है, पर अशान्ति तब तक नहीं मिटती जब तक हमारा विकल्प नहीं मिटता । अशान्ति और विकल्प एक ही सिक्के के दो पहलू हैं । दोनों साथ-साथ चलते हैं । विकल्प को मिटाए बिना अशांति को नहीं मिटाया जा सकता। ___ साधना में एक बात मुख्य है । वह बात है मन को खाली करने को । सुख-दुःख है क्या ? हमें इस पर सोचना है । हम आज के वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में देखें या महावीर के दार्शनिक परिप्रेक्ष्य में देखें, हमें यह ज्ञात होगा कि हमारा सारा जीवन प्रकम्पनों का जीवन है । बाह्य जगत् में प्रकम्पन हैं, वाइब्रेशन्स हैं और भीतरी जगत् में भी प्रकंपन हैं । प्रकम्पन ही वास्तव में सुखदुःख पैदा करते हैं । आपके मुंह में कोई चीज गयी । स्वाद आया । स्वाद क्या है-इसे भी समझ लेना है। कोई चीज जीभ पर रखी। सारी जीभ स्वाद नहीं लेती । जीभ के अगले हिस्से पर कुछेक बिन्दु हैं, जो स्वादानुभूति करते हैं । वस्तु का स्पर्श होते ही उनमें प्रकम्पन होता है और तब स्वाद की अनुभूति होने लग जाती है । यदि उनका प्रकम्पन बन्द हो जाये तो आप कुछ भी खा लें, स्वाद नहीं आयेगा । मुनि को आहार किस प्रकार करना चाहिएइसकी मीमांसा में आगम कहते हैं कि जैसे सांप बिल में सीधा प्रवेश कर जाता है वैसे ही मुनि भी कवल को, मुंह में इधर-उधर घुमाए बिना, सीधा निगल जाए । इसको शास्त्रीय भाषा में 'बिलमिन पन्नगभूए' कहा जाता है। इस अर्थ को हृदयंगम करने में पहले कठिनाई होती थी, परन्तु जब प्रकंपनों के संदर्भ में देखता हूं तो लगता है कि प्रकम्पन पैदा न करने पर स्वाद की अनुभूति नहीं होती। हमारी हर प्रवृत्ति प्रकम्पन की प्रवृत्ति है। सुख कब होता है ? दुःख कब होता है ? केवल वस्तु से सुख या दुःख नहीं होता। वस्तु और प्रकम्पन-दोनों का योग होने पर उसकी अनुभूति होती है।