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भोजन का विवेक
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ऋतभुक, ऋतभुक-स्वस्थ वह है जो ऋतभोजी है । स्वस्थ वह है जो ऋतभोजी है । स्वस्थ वह है जो ऋतभोजी है।' पक्षी उड़ गया। समस्या का समाधान हो गया। ____तीन शब्द हैं-हित, मित और ऋत । इन तीनों का अपना महत्त्व है । हितभोजी वह है जो स्वास्थ्य के अनुकूल भोजन करता है। मितभोजी वह होता है, जो थोड़ा खाता है । डॉक्टरों के लिए नहीं खाता । एक डॉक्टर ने भोजन को चार भागों में बांटते हुए कहा कि मनुष्य एक भाग तो अपने शरीर के लिए खाता है और तीन भाग हमारे लिए खाता है । अगर वह ऐसा न करे तो डॉक्टरों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाए । यदि सभी लोग मितभोजी बन जाएं तो डॉक्टरों को बोरिया-बिस्तर बांधना पड़े। उनकी जीविका समाप्त हो जाए।
अमेरिका में वैज्ञानिकों ने भोजन के सम्बन्ध में कई परीक्षण किए। उन्होंने चूहों को दो श्रेणियों में बांटा । आप मान लीजिए चूहों की एक श्रेणी 'क' है और दूसरी श्रेणी 'ख' है । 'क' श्रेणी के चूहों को पौष्टिक भोजन दिया गया और 'ख' श्रेणी के चूहों को साधारण भोजन । उन्हें दूसरे दिन भूखा रखा गया । निष्कर्ष यह आया कि जिन चूहों को पौष्टिक भोजन दिया गया वे बीमार पड़े और जल्दी मर भी गए । जिन्हें साधारण और एक दिन के अन्तर से भोजन दिया गया वे स्वस्थ रहे और अपेक्षाकृत दो वर्ष अधिक जीए। आज यह प्रयोग सिद्ध हो चुका है कि भारी चीजें खाना, ज्यादा खाना पेट पर अतिरिक्त भार डालना है । यह कार्य पांच मन बोझ ढोने वाली गाड़ी पर पन्द्रह मन वजन लाद देने जैसा है।
भोजन को पचाने के लिए ऊर्जा की जरूरत होती है । वह सारे शरीर में है। शरीर का कोई भी अंग कुछ अतिरिक्त श्रम करता है, तब उसमें ऊर्जा का बहाव अधिक हो जाता है । भोजन को पचाने के लिए पाचन-संस्थान को अतिरिक्त श्रम करना पड़ता है । उस समय उसे अतिरिक्त ऊर्जा अपेक्षित होती है। किसी एक अवयव को अतिरिक्त ऊर्जा की अपेक्षा होती है, तब दूसरे भागों में उसकी कमी हो जाती है । भोजन के तत्काल बाद चिंतन नहीं करने का अर्थ यही है कि पाचन-संस्थान में जाने वाली ऊर्जा में अवरोध पैदा न हो और फलतः ऊर्जा की कमी के कारण पाचन में विकृति न हो। जब हम सादा और संतुलित भोजन करते हैं तब हाथ, पैर और मस्तिष्क को संतुलित ऊर्जा मिलती रहती है। जब हम भारी और असंतुलित भोजन करते हैं तब