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आत्मा का साक्षात्कार
एक दिन कोयल चिड़ियों के राजा उकाब के पास गयी । उसने कहा"मैं बहुत सुन्दर गाती हूं, फिर भी दूसरे पक्षी मुझे बुलबुल का-सा आदर नहीं देते। आप राजा हैं । मैं चाहती हूं कि आप मुझे बुलबुल का स्थान दें । " उकाब ने कहा - " गाना सुनाओ । उसने गाना गाया । उसे अच्छा लगा । वह प्रसन्न हो गया । उसने उसकी तरक्की कर दी और बुलबुल का पद दे दिया । वह प्रसन्न हो गई ।
एक वृक्ष पर बैठी वह गाना गा रही थी । दूसरे पक्षी बैठे थे, जैसे ही उसने गाना शुरू किया, वे उठकर जाने लगे। वह फिर उकाब के पास आयी और बोली - "ये पक्षी मेरा अपमान कर रहे हैं। जैसे ही मैंने गाना शुरू किया, उठ उठकर जाने लगे । यह नहीं होना चाहिए। आपने मुझे बुलबुल का पद दिया है ।'
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"मैं राजा हूं, किन्तु भगवान् नहीं हूं । तुझे बुलबुल का पद दे सकता हूं, किन्तु बुलबुल बना नहीं सकता ।” उकाब ने कहा ।
कितनी मार्मिक बात कही गयी। पद दिया जा सकता है, किन्तु बनाया नहीं जा सकता । आत्मा को परमात्मा बनाया नहीं जा सकता । कोई भगवान् भी ऐसा नहीं है, जो आत्मा को परमात्मा बना दे । आत्मा स्वयं अपने कर्तृत्व से ही परमात्मा बन सकता है ।
। यदि आत्मा
आत्मा और परमात्मा ये दो नहीं हैं । वास्तव में एक ही परमात्मा नहीं होती तो आत्मा परमात्मा कभी नहीं बनती । कोयल कभी बुलबुल नहीं बन सकती । आत्मा कभी परमात्मा नहीं बन सकती । आत्मा तभी परमात्मा बनती है, जब आत्मा और परमात्मा दो नहीं हैं, एक ही हैं । यदि उनमें द्वैध होता तो आत्मा कभी परमात्मा नहीं बन सकती । पद देना अलग बात है और बनना अलग बात है ।
आत्मा और परमात्मा दोनों एक ही हैं तो फिर ये शब्द दो क्यों ? ये एक अपेक्षा से हैं । इनके पीछे एक दृष्टिकोण है । दरवाजा बन्द था, कमरे की स्थिति दूसरी थी । गर्मी थी और हवा नहीं आ रही थी । गर्मी के कारण कोई भीतर नहीं बैठ सकता था । दरवाजा खुल गया । कमरे का रूप दूसरा