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महावीर की साधना का रहस्य
श्वास पर मन को एकाग्र कर क्रमशः सूक्ष्म करना।
३. मौन-वाचिक-ध्यान। ध्यान की द्वितीय भूमिका
सालम्बन-ध्यान । इसकी तीन पद्धतियां हैं
पश्यना, विचय और अनुप्रेक्षा । पश्यना के पांच प्रकार हैं
१. श्वास-पर्याय पश्यना । २. औदारिक-पर्याय पश्यना । ३. तेजस-पर्याय पश्यना। ४. चित्त-पर्याय-पश्यना। ५. कर्म-पर्याय पश्यना।
यह स्थूल दर्शन से सूक्ष्म दर्शन की प्रक्रिया है । विचय के चार प्रकार हैं
१. आज्ञा-विचय–अर्हतों की आज्ञा (अनुभवों) के विवेक का निर्णय के लिए चिन्तन की एकाग्रता।
२. अवाय-विचय-क्रोध आदि के संस्कारों तथा उनके हेतुभूत शरीरगत रासायनिक परिवर्तनों के विवेक के लिए चिन्तन की एकाग्रता ।
३. विपाक-विचय-कर्म-संस्कार के उदय से होने वाले पर्यायों के विवेक के लिए चिन्तन की एकाग्रता ।
४. संस्थान-विषय-पदार्थ मात्र की आकृतियों के लिए चिन्तन की एकाग्रता। अनुप्रेक्षा के चार प्रकार हैं
१. अनित्य-अनुप्रेक्षा। २. अशरण-अनुप्रेक्षा। ३. भव-अनुप्रेक्षा। ४. एकत्व-अनुप्रेक्षा।
ध्यान में होने वाले सुखद और दुःखद संवेदनाओं के प्रति राग-द्वेष का भाव न बने, इस दृष्टि से ध्यान के अन्तराल में अनुप्रेक्षा का अभ्यास किया जाता है।