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________________ १७२ महावीर की साधना का रहस्य श्वास पर मन को एकाग्र कर क्रमशः सूक्ष्म करना। ३. मौन-वाचिक-ध्यान। ध्यान की द्वितीय भूमिका सालम्बन-ध्यान । इसकी तीन पद्धतियां हैं पश्यना, विचय और अनुप्रेक्षा । पश्यना के पांच प्रकार हैं १. श्वास-पर्याय पश्यना । २. औदारिक-पर्याय पश्यना । ३. तेजस-पर्याय पश्यना। ४. चित्त-पर्याय-पश्यना। ५. कर्म-पर्याय पश्यना। यह स्थूल दर्शन से सूक्ष्म दर्शन की प्रक्रिया है । विचय के चार प्रकार हैं १. आज्ञा-विचय–अर्हतों की आज्ञा (अनुभवों) के विवेक का निर्णय के लिए चिन्तन की एकाग्रता। २. अवाय-विचय-क्रोध आदि के संस्कारों तथा उनके हेतुभूत शरीरगत रासायनिक परिवर्तनों के विवेक के लिए चिन्तन की एकाग्रता । ३. विपाक-विचय-कर्म-संस्कार के उदय से होने वाले पर्यायों के विवेक के लिए चिन्तन की एकाग्रता । ४. संस्थान-विषय-पदार्थ मात्र की आकृतियों के लिए चिन्तन की एकाग्रता। अनुप्रेक्षा के चार प्रकार हैं १. अनित्य-अनुप्रेक्षा। २. अशरण-अनुप्रेक्षा। ३. भव-अनुप्रेक्षा। ४. एकत्व-अनुप्रेक्षा। ध्यान में होने वाले सुखद और दुःखद संवेदनाओं के प्रति राग-द्वेष का भाव न बने, इस दृष्टि से ध्यान के अन्तराल में अनुप्रेक्षा का अभ्यास किया जाता है।
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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