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द्वारा पूर्वार्जित कर्म क्षीण होते हैं और नये कर्म का बंध रुकता है । कर्म क्षीण होते हैं । इसलिए ध्यान द्वारा मानसिक शान्ति और शारीरिक वेदना की उपशांति होती है । नए कर्म का बंध रुकता है, इसलिए ध्यान द्वारा शान्ति और उपशांति में स्थायित्व आता है । ऐहिक और पारलौकिक कोई भी ऐसा फल नहीं जो ध्यान द्वारा प्राप्त न हो सके, पर ध्यान का प्रयोग केवल वीत-रागता की सिद्धि के लिए होना चाहिए ।
ध्यान