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जागरिका
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हैं, जहां संकल्प करते हैं, वहां प्राणवायु को जाना ही होता है । हमने .यहाँ धारणा की, संकल्प किया, मन को यहां केन्द्रित कर दिया। प्राणवायु की धारणा यहां न आए, यह हो ही नहीं सकता। वहां उसे जाना ही होगा। तो मन के पीछे मन की धारणा या संकल्प के पीछे प्राणवायु को जाना होता है । प्राणवायु जब वहां चली जाती है, फिर हम करते हैं कुंभक । उसे स्थिर करते हैं, वहां रोकते हैं। वहां रोकने पर इतना दबाव पड़ता है कि वह अपने आप ही रुक जाती है । मनःचक्र पर यही बात लागू होती है कि जब मनःचक्र की ग्रंथि का भेदन करना है, मानसिक ग्रंथि का भेदन करना है, तो हमारी धारणा होगी मनःचक्र के स्थान पर । और मनःचक्र के स्थान पर जैसे हमने धारणा की-पूरक, रेचक और कुंभक किया, इस प्रक्रिया से वह ग्रन्थि खुल जाती
• प्राण और प्राणवायु में क्या मेव है ? प्राणवायु क्या है ?
प्राण जीवनी-शक्ति है । प्राणवायु हम बाहर से लेते हैं, वह एक ली हुई शक्ति है । प्राण और प्राणवायु एक नहीं हैं। हम जो वायु लेते हैं और जो वायु हमारे शरीर में रहती है, वह एक ही वायु है । शारीरिक स्थानों की भिन्नता के कारण उसके नाम अलग-अलग रख दिए गए हैं। संज्ञाएं उसकी भिन्न-भिन्न हो गयीं । मूलतः वह एक ही चीज है । प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान—ये पांच भेद कर दिए गए। और भी भेद किए जा सकते हैं । ये सारे भेद क्षेत्र के आधार पर किए गए । प्राणवायु का क्षेत्र और उसका कार्य समूचे शरीर में हो सकता है और समूचे शरीर में उसकी गति हो सकती है । संकल्प के बिना प्राणवायु की गति नहीं होती। मानसिक संकल्प के साथ प्राणवायु चली जाती है । मन के साथ उसका ऊर्ध्वगमन भी होता है, अधोगमन भी होता है । दोनों होते हैं । उसका मूल सम्बन्ध मन के साथ है । चमड़ी के नीचे समूचे शरीर में प्राणवायु रहती है । समूचे शरीर में रहती ही नहीं किन्तु जहां मन का संकल्प होता है, मन की गति होती है, वहां प्राणवायु चली जाती है । प्राण हमारी शक्ति है । वह किसी के द्वारा दी हुई नहीं है। प्राण क्या चीज है ? प्राण कैसे उत्पन्न होता है ? कैसे क्रिया करता है ?-इस पर बहुत विस्तार से हमें चर्चा करनी है।। • आपने कहा कि मन:चक्र हृदयचक्र नहीं है। क्या कोई हृदयचक्र भी है ? है तो दोनों में क्या भिन्नता है ?
हृदयचक्र और मनःचक्र में भिन्नता है। कुछ आचार्य छह चक्र मानते हैं,