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महावीर की साधना का रहस्य शरीर । वहां से सारी शक्ति, सारा पॉवर उत्पन्न होता है और हमारे सारे शरीर को सक्रिय बनाए रखता है ।
शरीर का नाम लेते ही आपकी कल्पना आएगी कि यही हाड़-मांस का, अवयव वाला शरीर । ऐसी कल्पना आप मत कीजिए । हमारे स्थूल शरीर में हाड़-मांस और अवयव हैं। कर्म शरीर में कोई अवयव नहीं है। वह मात्र एक शक्ति है । वह एक सूक्ष्म द्रव्य है। उसमें न हाड़-मांस है, न हाथ-पैर हैं और न कान-नाक और मुंह है । कुछ भी नहीं है। तैजस शरीर में भी कुछ भी नहीं है । अवयव नहीं है और अस्थि-मांस भी नहीं है दोनों सूक्ष्म शरीरों में कुछ भी नहीं है । वे केवल शक्तियां हैं । ___आज के कुछ योगी इनके अतिरिक्त भी शरीर की कुछ और कल्पनाएं करते हैं । कोई कठिनाई नहीं है। हमारे सूक्ष्म शरीर की, कर्म शरीर की, जितनी प्रवृत्तियां हैं, उतने ही शरीरों की कल्पनाएं की जा सकती हैं। विस्तार में जाएं तो कर्म-शरीर के पचास प्रकार किए जा सकते हैं, और विस्तार का संक्षेप करें तो एक शब्द में सब शरीरों को कर्म शरीर कहा जा सकता है। ___साधना की दृष्टि से शरीर क्या है, शरीर का हमारे लिए क्या उपयोग है और शरीर का हमें मूल्य आंकना चाहिए ये कुछ बातें मैंने प्रस्तुत की। मैं समझता हूं कि हम इन दृष्टियों से शरीर पर विचार करेंगे और शरीर के प्रति जो संस्कार और धारणाएं हैं उनमें यदि परिमार्जन जैसी कोई बात लगे तो परिमार्जन करने में भी संकोच नहीं करेंगे ।