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महावीर की साधना का रहस्य
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का मुख्य अंग बताया । उन्होंने कहा कि संवर करो, संवर करो । क्यों ? यह प्रश्न हो सकता है । चित्त-पर्याय का निर्माण हमें वहां तक नहीं ले जाता जहां हम पहुंचना चाहते हैं । वह अस्तित्व तक कभी भी नहीं ले जा सकता । चाहे हम चित्त पर्याय की साधना हजारों-लाखों वर्षों तक करते चले जायें, पर 1. अपने अस्तित्व तक नहीं पहुंच सकते । अस्तित्व की देहरी तक नहीं पहुंच सकते । उसकी कल्पना मात्र कर सकते हैं, किन्तु उसके मूल तक नहीं पहुंच सकते। उसमें कुछ बाधाएं उपस्थित हो जाती हैं, विघ्न आ जाते हैं और फिर से हमें लौट आना पड़ता है। वहां से लौटना ही पड़ता है, आगे पहुंच नहीं पाते । चित्तातीत अवस्था की साधना हमें अस्तित्व तक पहुंचा देती है ।
हमारा अस्तित्व, हमारा कर्म शरीर और हमारा स्थूल शरीर – ये तीन चीज हैं । हमारा शरीर चंचल है । हमारी वाणी चंचल है । हमारा मन चंचल क्यों है ? ये प्रवृत्ति क्यों करते हैं ? सूक्ष्म शरीर ने इनका निर्माण किया है । आत्मा शरीर का निर्माण नहीं कर सकता, चेतन शरीर का निर्माण नहीं कर सकता, चेतन जड़ का निर्माण नहीं कर सकता। जड़ का निर्माण जड़ ही करता है, दूसरा नहीं करता । चेतन कभी नहीं कर सकता । अगर चेतन के द्वारा शरीर का निर्माण हो जाए तो फिर ब्रह्म के द्वारा अचेतन सृष्टि का निर्माण होने में कोई कठिनाई पैदा नहीं होगी । और हमारा तर्क वहीं स्खलित हो जायेगा । उपादान के प्रतिकूल भी कार्य निष्पन्न हो सकता है । जब हम यह स्वीकार करते हैं कि उपादान के प्रतिकूल किसी कार्य का सृजन नहीं होता तो हमें यह स्वीकार करना होगा कि चेतन अचेतन का निर्माण नहीं
शरीर का निर्माण शरीर
करता । चेतन अचेतन का सृजन नहीं कर सकता । करता है । क्योंकि सूक्ष्म शरीर - कर्म शरीर भी अचेतन है और यह स्थूल शरीर भी अचेतन है । अचेतन के द्वारा अचेतन का निर्माण होना है, चेतन से अचेतन का निर्माण नहीं होता ।
सूक्ष्म शरीर ने स्थूल शरीर का निर्माण क्यों किया ? उसकी अपनी अपेक्षा है | वह बने रहना चाहता है । आत्मा चाहती है कि सूक्ष्म शरीर छूट जाए, शरीर बन्धन है और उसकी शक्तियों को रोके हुए है। पिंजड़ा बना हुआ है। पक्षी कब चाहता है कि वह पिंजड़े में रहे । पक्षी चाहता है कि पिंजड़ा टूट जाए । आत्मा चाहती है कि शरीर छूट जाए, बिखर जाए । सूक्ष्म शरीर हटना नहीं चाहता, वह बना रहना चाहता हैं । वह पुष्ट रहना चाहता है । तो कोई भी जो रहना चाहता है, उसके लिए साधनों की भी
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