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शरीर का संवर
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और यह अचेतन है, जड़ है । शरीर अचेतन है, आत्मा चेतन है, यह विवेक स्पष्ट हो गया तो फिर उसका विसर्जन होना शुरू हो जाता 1 • सूक्ष्म शरीर का निर्माता कौन है ?
यह कौन की बात चलेगी तो मेरे लिए भी बड़ी कठिनाई होगी । कौन के प्रश्न का उत्तर तो फिर कौन में ही चला जाता है । सूक्ष्म शरीर का निर्माता है पहला सूक्ष्म शरीर — उससे पहले का शरीर । आप पूछेंगे कि उसका निर्माता कौन है ? उससे पहले का शरीर ।
• भगवान् महावीर किसी निर्जरा के लिए तपस्या नहीं कर रहे थे तो फिर उन्होंने अभिग्रह क्यों धारण किया ?
मैंने यह नहीं कहा कि निर्जरा के लिए नहीं कर रहे थे। मैंने यह कहा कि संवर के लिए निर्जरा हो रही थी । संवर के साथ निर्जरा का होना होता है । अभिग्रह का मतलब संवर है । मैं यह नहीं करूंगा, यह क्या है ? मैं नहीं खाऊंगा — नहीं खाना प्रवृत्ति का निरोध है, वह संवर है ।
• क्या सम्यक्त्व के बिना काय-संवर नहीं होता ?
सम्यक्त्व नहीं होगा तब तक तो काय-संवर की बात ही नहीं आएगी । पहले तो हमारा विवेक होगा, सम्यक्दर्शन होगा, तब काय-संवर की बात प्राप्त होगी । काय - संवर का जैसे-जैसे विकास होता है, यह व्रत -संवर आदि अपने आप ही आ जाते हैं । काय-संवर के बिना व्रत-संवर कैसे रहेगा ? सब में मुख्य काय-संवर है । मैंने व्रत ले लिया कि मैं हिंसा नहीं करूंगा, काया की इतनी चंचलता है कि हाथ पटकता ही रहता हूं, कैसे व्रत-संवर होगा ? सबसे पहले भूमिका के रूप में काय-संवर की साधना करनी होगी । अहिंसा की गुप्ति तब होगी जब काया का संवर होगा । काया का संवर हुए बिना आसक्ति क्षीण नहीं होगी । मूल बात है काया का संवर । जब तक काया की आसक्ति नहीं छूटती तब तक कोई भी आदमी यह संकल्प ही नही कर सकता कि मैं नहीं खाऊंगा । काया की आसक्ति क्षीण होती है, तभी आदमी नहीं खाने की बात सोचता है ।