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वाक-संवर-२
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ने पूछा-'क्या सुना ?' उसने कहा-'मैं ध्यान करते-करते शब्दातीत स्थिति में पहुंच गया ।' गुरु ने कहा- 'चलो, काम हो गया।'
शब्दातीत अवस्था में पहुंच जाना, विचारातीत अवस्था में पहुंच जाना, विकल्पातीत अवस्था में पहुंच जाना, निर्विकार की स्थिति में पहुंच जाना, यह है मौन की स्थिति, यह है वाक्-संवर। किन्तु वह पहुंचा विचार के द्वारा । एक विचार लेना होगा आपको, एक संकल्प लेना होगा आपको ।
बौद्ध साधकों में यह पद्धति रही है कोई भी शिष्य साधक के पास जाता और कुछ पूछता, तो गुरु कोई न कोई समस्या या पहेली उसे दे देते। चीनी भाषा मैं पहेली को 'कुंग-एन' ओर जापानी भाषा में 'कोन' कहते हैं। उस पहेली को पहले सुलझाना पड़ता । मैं समझता हूं कि हमारे यहां जो यह धर्म्य-ध्यान की पद्धति है, कोई भिन्न पद्धति नहीं है । उसका भी यही रूप रहा है। किन्तु वह आज थोड़ा विस्मृत हो चुका है । एक प्रश्न को लेना, उस पर चिंतन शुरू करना और चिन्तन करते-करते अचिन्तन की भूमिका तक पहुंच जाना और सूक्ष्म के साथ साक्षात् सम्पर्क स्थापित कर लेना ।
तीन चीजें होती हैं—सूक्ष्म, व्यवहित और विप्रकृष्ट । इन तीनों से से किसी एक पर धारणा करते हैं, उसके साथ सम्पर्क हो जाता है । यह हैं विचार से निर्विचार की ओर जाने की प्रक्रिया । यह है शब्द से शब्दातीत स्थिति में पहुंचने की प्रक्रिया ।
शब्द के सहारे अशब्द की स्थिति तक पहुंचना है। इसमें एक बोत पर और ध्यान दें। शब्दों का चुनाव भी हमारा बहुत उपयुक्त होना चाहिए । यह 'अहम्' का चुनाव क्यों किया गया ? जप के लिए अमुक-अमुक शब्दों का चुनाव क्यों किया गया ? शब्दों का भी बहुत महत्त्व है । हम जिन शब्दों का उच्चारण करते हैं, वे शब्द हमारे आस-पास में प्रकम्पन उत्पन्न करते हैं जिस प्रकार की ध्वनि-तरंगें पैदा करते हैं उनका हमारे पर बहुत बड़ा असर होता है । हमने पूना के डक्कन कॉलेज में देखा, बंगलौर के म्यूजियम में देखा कि ध्वनि का उच्चारण होते ही किस प्रकार के प्रकम्पन होते हैं । आप आश्चर्य करेंगे देखकर कि जैसे ही हम उच्चारण करते हैं हमारे शब्द विद्युत् की चमक की रेखा बनाते हुए इस प्रकार दौड़ने लग जाते हैं कि जिसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते । अतिशय चपल गति से दौड़ने लग जाते हैं । हम किस प्रकार प्रकंपन अपने आस-पास उत्पन्न करते हैं और किस प्रकार का उच्चारण किस प्रकार का प्रकंपन पैदा करता है, किस प्रकार की ध्वनि और तरंगें