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वाक्-संवर-२
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इस कोलाहल की आकुलता के वातावरण में मौन का महत्त्व और बढ़ जाता है । सूक्ष्म का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है । स्थूल से सूक्ष्म की ओर लौटने का मूल्य और अधिक बढ़ जाता है । दुनिया में यह कैसे हो, इसका हम नियन्त्रण नहीं कर सकते । किन्तु अपने लिए नियंत्रण कर सकते हैं । स्थूल से सूक्ष्म ध्वनि की ओर जाने का अभ्यास हमारा बढ़े। करें कि स्थूल से सूक्ष्म ध्वनि की ओर जाएं ।
हम यह प्रयत्न
आप जप करते हैं, संकल्प करते हैं । यदि हमारा जप, हमारा संकल्प स्थूल वाणी में होगा तो उतना लाभदायी नहीं होगा, उतना शक्तिशाली नहीं होगा और उससे हम लाभान्वित नहीं होंगे। यदि हमारा जप, हमारा संकल्प सूक्ष्म वाणी में होगा तो वह अधिक शक्तिशाली बनेगा । हमें सूक्ष्म का अभ्यास करना है । जैसे आप 'अर्हम्' का उच्चारण नाभि से शुरू कर पांच रूपों में ले जाते हैं-नाभि, हृदय, तालु, बिन्दु और अर्धचन्द्र- ऊपर तक ले जाते हैं । इस उच्चारण से क्या प्रतिक्रिया होती है, उस पर भी आप ध्यान दें । योग ने मानसिक ग्रन्थियों के भेदन की पद्धति का विकास किया था। जब हमारा उच्चारण सूक्ष्म हो जाता है, उस समय ग्रंथियों का भेदन शुरू हो जाता है । आज्ञाचक्र तक पहुंचते-पहुंचते ध्वनि बहुत सूक्ष्म हो जाती है, सूक्ष्मतम हो जाती है और उन ग्रंथियों का भेदन भी शुरू हो जाता है । हमारी ग्रन्थियां जो सुलझती नहीं हैं, वे ग्रन्थियां इन सूक्ष्म उच्चारणों के द्वारा सुलभ जाती हैं । जैन आचार्यों ने इस पर विचार किया । उन्होंने कहा – 'सम्यक्दृष्टि, विरति संयम और अप्रमाद — ये सारी स्थितियां विभिन्न उच्चारणों से होने वाले ग्रन्थि-भेद के द्वारा प्राप्त हो सकती हैं । ग्रन्थियों का भेदन होता है और स्थितियां विकसित हो जाती हैं । सम्यक्त्व की दृष्टि विकसित हो जाती है, व्रत की दृष्टि विकसित हो जाती है और अप्रमाद की दृष्टि विकसित हो जाती है । सूक्ष्म उच्चारण करने की जो एक विधि है, प्रक्रिया है, उसका विकास करते चले जाएं, तो हमारी दिशा होगी वाक्-संवर की दिशा । वाक्संवर की दिशा का मतलब है निर्विकल्पता की दिशा, विचार - शून्यता की दिशा । निर्विचार की दिशा में प्रयाण करने से पहले विचार का भी सहारा लेना पड़ता है । आप सही मानिए कि विचार ही हमें निर्विचार तक पहुंचाता है । कोई भी विचारशून्य व्यक्ति निर्विचार की स्थिति में नहीं पहुंच सकता । लगता कुछ अटपटा है कि विचार निर्विचारता की स्थिति में कैसे पहुंच सकता है ? पहले तो हमें कोई-न-कोई विचार लेना ही पड़ता है ।