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मनोविज्ञान और चरित्र - विकास
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करूंगा ।' मोहम्मद ने फिर पूछा - " वैसी बात अगर तुम्हें पवित्र पुस्तक में नहीं मिलेगी तो बताओ फिर किस आधार पर करोगे ?' उसने कहा – 'अगर उस पवित्र पुस्तक में उसका कोई निर्णय नहीं मिलेगा तो मैं पैगम्बरों के आधार पर उसका फैसला करूंगा ।' मोहम्मद ने फिर पूछा - ' अगर उनके निर्देशनों में भी तुम्हें मार्गदर्शन नहीं मिला, कोई समाधान नहीं मिला तो बताओ फैसला किस आधार पर करोगे ?' तब उसने कहा - ' अगर पैगम्बर के निर्देशनों में भी मुझे आधार नहीं मिला तो फिर मैं अपने विवेक के आधार पर फैसला दूंगा।' यह है विवेक का जागरण । जो व्यक्ति विवेक को साथ लेकर चलता है, विवेक - चेतना को जागृत कर चलता है, उसके चरित्र का निर्माण विवेक के आधार पर होता है । और यह बहुत ही ऊंची बात है, उच्चतम भूमिका की बात है । हमारी धार्मिक चेतना को जागृत करना विवेक को जागृत करना है ।
हमें कठिनाई भी बहुत है । धर्म-चेतना या परमार्थ की चेतना के बारे में - मतभेद भी बहुत रहे हैं । एक ऋषि कहता है – 'यह बहुत बड़ी कठिनाई है, हम कैसे यह निर्णय करें कि हमारा यह आचरण सही है और यह गलत है । धर्म और अधर्म स्वयं आकर हमें यह नहीं कहते हैं कि मैं धर्म हूं और मैं अधर्म हूं। अगर वे आकर हमें यह निर्णय दे दें कि यह तुम्हारा आचरण अच्छा है और यह तुम्हारा आचरण अच्छा नहीं है । यह धर्म है और यह अधर्म है । मैं स्वयं धर्म आकर कह रहा हूं यह आचरण तुम्हरा धर्म है । और इसी प्रकार अधर्म आकर कह दे कि यह तुम्हारा आचरण अधर्म है, यह बात मैं स्वयं अधर्मं कह रहा हूं ।' तो मनुष्य को कोई कठिनाई नहीं होगी । देवता, गन्धर्व आदि कोई आकर यह नहीं कहता है कि यह धर्म है और यह अधर्म है । तो फिर निर्णय किस आधार पर करें ? तो आखिर रहा विवेक ही आधार । हमें निर्णय करना होगा विवेक के आधार पर । किसी भी चीज का निर्णय हमारा विवेक ही करेगा । और विवेक के आधार पर ही हम हर चीज का निर्णय करते हैं । सुकरात को जहर की प्याली दी जा रही थी । सारे मित्र, प्रशंसक, भक्त और समर्थक उदास हो रहे थे, रुआंसे हो रहे थे, आकुल व्याकुल हो रहे थे । घबराए हुए बोले – 'गुरुदेव ! यह क्या हो रहा है ? अभी आप हमारे सामने हैं, दो क्षण में आप मर जाएंगे। बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा ।' सुकरात पर्वत की भांति अविचल था । मन में कोई प्रकम्पन नहीं था, कोई भय नहीं था । मन में कोई घबराहट नहीं, मन में कोई वेदना नहीं । शांत भाव से