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मन
मन का निवास शरीर के किसी एक स्थान में है या समूचे शरीर में ? आपने मन को चेतना का स्तर बनाया । वह चेतना का स्तर कैसे हो सकता है ? मन अचेतन है या चेतन ?
हमारे पास तीन दृश्य वस्तुएं हैं—शरीर, वाणी और मन । दृश्य का अर्थ आंखों से दिखाई देने वाली नहीं, किन्तु क्रिया से प्रत्यक्ष होने वाली वस्तु है । शरीर वाणी और मन की क्रिया हमें प्राप्त है इसलिए इन तीनों का अस्तित्व हम प्रत्यक्षतः स्वीकार करते हैं ।
शरीर अचेतन है, वाणी अचेतन है और मन भी अचेतन है । शरीर अपने आप क्रिया नहीं करता । इनकी क्रिया के पीछे जो प्रेरक तत्त्व है वह है चेतना । उसी के प्रकाश से हमारा शरीर, वाणी और मन सक्रिय 1
हमारी चेतना सूर्य की भांति अखण्ड है । वह अनावृत होती है तब उसके प्रकाश में कोई अवरोध नहीं होता । उसकी क्षमता का कोई विभाजन नहीं होता । हमारी चेतना अनावृत नहीं है, इसलिए वह सर्वात्मना प्रकट नहीं हो रही है । उसकी कुछ रश्मियां प्रकट हो रही हैं और वे भी किसी माध्यम से प्रकट नहीं होतीं । वे अपने आप प्रकट होती हैं । आवृत चेतना के प्रकट होने का एक माध्यम है— इन्द्रिय । आंख, कान, नाक, जिल्ह्वा और त्वचा - इन पांचों इंद्रियों के माध्यम से जो चेतना प्रकट होती है वह इंद्रिय स्तर की चेतना है । यह वास्तव में चेतना का स्तर नहीं है, चेतना के प्रकट होने का स्तर है । व्यावहारिक उपयोगिता की दृष्टि से इसे कहा जा सकता है ।
इन्द्रिय-स्तर की चेतना
आवृत चेतना के प्रकट होने का दूसरा माध्यम है मन । मस्तिष्क के माध्यम से जो चेतना प्रकट होती है वह मन के स्तर की चेतना है । मन अपने आप में अचेतन है । वह मस्तिष्क की क्रिया है । किन्तु उसके माध्यम से जो चेतना प्रकट होती है वह मानसिक चेतना है । इंद्रिय स्तर की चेतना में भी मस्तिष्क माध्यम होता है, किन्तु इन्द्रियों के पृथक्-पृथक् केन्द्र बने हुए हैं । दूसरे में वह मस्तिष्क का एक छोटा कार्य है । इन्द्रियों के स्तर पर जो