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मन
कि मन चेतन है और यदि मस्तिष्क की यांत्रिक क्रिया को देखते हैं तो कह सकते हैं कि मन अचेतन है।
इस लम्बी चर्चा का सिंहावलोकन इस भाषा में होगा कि आवृत चेतना शरीर के माध्यम से प्रकट होती है । मुख्य माध्यम दो हैं--इंद्रिय और मन । माध्यम स्वस्थ होते हैं तब चेतना प्रकट हो जाती है और वे विकृत हो जाते हैं तब चेतना प्रकट नहीं होती। शरीर के माध्यम के बिना कुछ भी प्रकट नहीं होता—न शक्ति, न ज्ञान और न आनन्द । • मन की परिभाषा क्या है ?
बृहद् मस्तिष्क के द्वारा जो चैतन्य प्रकट होता है, जिसमें त्रैकालिक ज्ञान की क्षमता होती है, उसका नाम है मन । • मन की क्रिया क्या है ?
मन की तीन क्रियाएं हैं-स्मृति, चिन्तन-मनन और कल्पना । स्मृति तब होती है जब धारणा होती है। धारणा का अर्थ है-संचय-कोष । हमारे मस्तिष्क में असंख्य संचय-कोष हैं, छोटे-छोटे मस्तिष्कीय कोष (Brain Cells) हैं । उनमें स्मृति संचित रहती है । बाहरी उत्तेजनों से वह प्रकट होती है । स्मृति के आधार पर विचार होता है, फिर कल्पना होती है। • क्या मन इस शरीर के साथ समाप्त हो जाता है या चेतना के साथ आगे भी जाता है ?
मन इस शरीर के साथ समाप्त हो जाता है । अगले जन्म में नया शरीर बनता है और नये शरीर में नया मन । • क्या उसमें पूर्वजन्म की स्मति होगी?
उसमें अतीत की स्मृति होगी। वर्तमान जीवन के अतीत की स्मृति उसे वर्तमान मस्तिष्क के माध्यम से होती है । पूर्वजन्म की स्मृति सूक्ष्म शरीर में संचित रहती है । उसका संचय-कोष यदि उत्तेजित हो सके तो पूर्वजन्म की स्मृति भी मन को हो सकती है। • इसको यदि हम न मानें तो आप किस प्रकार समझायेंगे ?
आप न मानें इसमें कोई कठिनाई नहीं है, किन्तु जो है उसे न मानना एक बात है, उसका अस्तित्व दूसरी बात है । क्या हमारे न मानने से वह नहीं होगा? ऐसा नहीं हो सकता। उसे नहीं मानने से कोई हानि या लाभ होगा यह प्रश्न प्राथमिक नहीं है । प्राथमिक प्रश्न यह है कि हम चिन्तन की सूक्ष्मता में होते हैं तब उसे अस्वीकार नहीं कर सकते । बहुत सारे ऐसे जीव