________________
मन का विलय
१२५
हमारी वृत्ति पर चोट होती है मन एकदम उछल पड़ता है। यह उछलन मन की नहीं है, यह चंचलता मन की नहीं है, यह है वृत्ति की ऊछाल और चंचलता । हमें वास्तव में विलय करना है वृत्ति का, शोधन करना है वृत्ति का, निरसन करना है वृत्ति का । इसीलिए जैन साधकों ने इस बात पर सबसे अधिक बल दिया कि कषाय को समाप्त करो। निष्कषायता की स्थिति को प्राप्त करो । कषाय-मुक्त होने की स्थिति आएगी तो अपने आप वृत्तियां क्षीण हो जाएंगी। वृत्तियां क्षीण होंगी तो मन अपने आप ही क्षीण हो जाएगा। मन को स्थिर करने की, मन को विलीन करने की या मन को अनुत्पन्न करने की कोई जरूरत नहीं है।