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इन्द्रिय-संवर
और उसके आसपास अभ्यास को जीवित रखने वाले पुद्गल संचित हो जाते हैं । ये होते हैं संस्कार । संस्कार तो मृत्यु के बाद भी रह जाते हैं।
आपने एक घटना सुनी होगी। एक सैनिक अधिकारी था। उसकी अंगुलियां कट गईं। अंगुलियों का प्रत्यारोपण कर दिया गया। प्रत्यारोपण तो हो गया, परन्तु वह कहीं भी पार्टी या भोज में जाता, आसपास में जो लोग होते, तत्काल उसकी अंगुलियां उनकी पॉकेट के पास चली जातीं। उसे बड़ा संकोच होता, शर्म महसूस होने लगती। उसने जांच कराई तो मालूम हुआ कि जो अंगुलियां लगाई गई हैं, वे पॉकेटमार की हैं। उनमें वे संस्कार शेष थे । इसलिए जब भी कोई प्रसंग आता, वे अपने आप ही दूसरे की पॉकेट के पास चली जातीं। इस प्रकार संस्कार तो हमारे शरीर में शेष रह जाते हैं, परन्तु कर्म सूक्ष्म शरीर के साथ चले जाते हैं।