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वक्-संवर-१
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की गुप्ति होनी चाहिए। और जहां मन की गुप्ति है वहां वचन की गुप्ति होनी चाहिए। जहां निर्विचारता है वहां मौन होना चाहिए और जहां मौन है वहां निर्विचारता होनी चाहिए। दो स्थितियां साथ में होनी चाहिए । हम दोनों के टुकड़े नहीं कर सकते । यह हो नहीं सकता। मौन का मतलब क्या है ? आप नहीं बोले, इतना ही नहीं है । आप नहीं बोले, इसका भी एक मतलब तो है। आप नहीं बोले, इसका भी एक अर्थ है । आपके नहीं बोलने से, आपके शरीर की जो शक्ति बोलने से क्षीण होती थी, वह रुक गई। इतना लाभ तो अवश्य हुआ। बोलने से जो ताकत खर्च होती है, बोलने से जो श्रम पड़ता है, बोलने की प्रवृत्ति होने से जो शारीरिक स्नायुओं में तनाव आता है, उससे आप अवश्य बच गए । . एक लाभ मिला। किन्तु मौन का जो लाभ चाहिए, वह नहीं मिला । और बिलकुल नहीं मिला। ___ मौन का लाभ क्या है ? मौन का लाभ है—विचारों का विसर्जन, विचारों का निरसन । विचारों को निरस्त कर देना, विचारों को समाप्त कर देना, यह है मौन का लाभ। वह तब होगा, जब आपके मन में कोई विकल्प नहीं होगा। आप और गहराई में जाइए। मन में और वाणी में आखिर अन्तर क्या है ? कोई बड़ा अन्तर नहीं है। एक ही चीज के दो पहलू हैंमन और वाणी। दोनों में इतना-सा अन्तर है-मन शब्द के सहारे चलने वाला विकल्प है और वाक् शब्द के सहारे बाहर झलक पड़ने वाला विकल्प । जो विकल्प हमारे अन्दर पल रहा था उसे हम कहते हैं मन । जो विकल्प हमारे मुंह से बाहर निकल पड़ता है उसे हम कहते हैं-वाक् । पहले मन और फिर वाक् । वाक् है मन का उत्तरवर्ती चरण । पहला चरण मन और दूसरा चरण वाक् । मन शब्द के सहारे चलता है। क्या शब्द के बिना मन चलता है ? शब्द का सहारा लिए बिना मन नहीं चलता। जितना चिन्तन, जितना विचार, जितना संकल्प और जितना विकल्प, सारा का सारा शब्द के सहारे चलता है। और वाणी भी शब्द के सहारे चलती है। दोनों शब्द के सहारे चलते हैं। शब्द के बिना मन नहीं चलता। शब्द के बिना वाणी नहीं चलती । केवल पहला चरण और दूसरा चरण, दोनों में बस इतना ही अन्तर आता है। .. आपके मन में विकल्प चल रहे हैं । आपके मन में संकल्प के बादल उमड़ रहे हैं । विचार और चिंतन का सिलसिला बन्धा हुआ है। और आप सोचते हैं कि मौन हो गया। कभी नहीं हुआ। हो नहीं सकता। मौन का जो परि