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इन्द्रिध-संवर
आपने मुझे गाली दे दी?' विवेकानन्द ने कहा-'अभी तो तुम कहे रहे थे कि शब्दों में क्या पड़ा है ? " और अब तुम कह रहे हो कि मुझे तो गाली दे दी। तुम्हीं कह रहे थे शब्दों में क्या धरा है ?.. ___ शब्दों में बहुत ताकत होती है । एक शब्द से कुछ का कुछ हो जाता है। __ यह हमारा सिद्धांत है कि इष्ट शब्द, इष्ट रूप, इष्ट गन्ध, इष्ट स्पर्श और इष्ट रस, ये प्राप्त होते हैं तो शरीर प्रसन्न, इन्द्रियां प्रसन्न, मन प्रसन्न और सारा जीवन उत्फुल्ल होता है । अगर किसी व्यक्ति को आप गालियां ही गालियां देते चले जाइए, वह बिलकुल निकम्मा हो जाएगा। आप किसी बच्चे को प्रोत्साहन दीजिए, वह अगर अच्छा नहीं है तो भी आपके प्रोत्साहन से अच्छा बन जाएगा। ___ मैंने इन्द्रिय-संवर की चर्चा की। उसमें यह नहीं है कि आप अनिष्ट विषयों को ग्रहण कीजिए । कोई जरूरत नहीं है। अगर आप अनिष्ट विषयों को देखेंगे, ग्रहण करेंगे शायद आपके मन पर अच्छा असर नहीं होगा। किन्तु उसमें एक बात है और वह यह है कि जहां तक मैंने पहुंचना चाहा था, वहां तक आप पहुंच जाएं, मैं पहुंच जाऊं तो फिर ये अनिष्ट भी हमारे लिए इष्ट बन जाएंगे। हमारा मन इतना शक्तिशाली हो जाए कि अनिष्ट से अनिष्ट आने वाली चीज को हम इष्ट में बदल सकें । यह परिवर्तन की सत्ता हमारे अन्दर है । हमारे मन में है। हर एक खराब वस्तु को अच्छी में बदल सकते हैं । यह हमारी शक्ति और हमारी ताकत है ।
एक व्यक्ति गाली को सुनकर जल-भुन उठता है तो दूसरा व्यक्ति प्रफुल्ल हो जाता है । आचार्य भिक्षु से एक व्यक्ति ने कहा-'आपका मुंह देखने वाला नरक में जाता है।' आचार्य भिक्षु खिल उठे। प्रफुल्ल हो उठे। और यदि किसी दूसरे व्यक्ति को कहा जाता तो वह तमतमा उठता । चेहरा लाल-पीला हो जाता। आवेश में आ जाता और साथ-साथ गालियों की बरसात भी कर देता । आखिर यह अन्तर कहां से आया ? अन्तर है उस मन की शक्ति में । उस व्यक्ति ने मन का इतना विकास कर लिया कि वह बाहरी अनिष्ट को इष्ट में बदल सकता है। मूल बात है कि हम वहां तक पहुंच जाएं, जिस सत्ता तक पहुंचने पर अनिष्ट को इष्ट में बदलने की और इष्ट को केवल इष्ट के रूप में स्वीकार करने की क्षमता हमारी विकसित हो जाए। और उसमें आने वाली गन्दगी, कीचड़, विकृति को अलग से छानने की क्षमता पैदा हो जाए।