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श्वास-संवर
साधना का प्रयोजन है—अपने-आप से परिचित होना, अपनी शक्तियों से परिचित होना और अपनी शक्तियों का ठीक-ठीक उपयोग करना । हमारी पहली कठिनाई है कि हम अपनी शक्तियों से परिचित नहीं हैं। हमारी दूसरी कठिनाई यह है कि हम अपनी शक्तियों को ठीक-ठीक काम में नहीं लेते । वे पड़ी रहती हैं, सुप्त रहती हैं और हमारे उपयोग में नहीं आतीं। साधना के द्वारा उन शक्तियां को जानने का प्रयत्न करते हैं और जानकर उनके उपयोग की दिशाओं का उद्घाटन करते हैं। शक्ति मूलतः एक है। और हमें मानना चाहिए कि शक्ति के जागरण का द्वार भी एक ही है। क्योंकि वह द्वार इतना विशाल है, इतना लम्बा-चौड़ा है कि उसमें हजारों-हजारों द्वार समाविष्ट हो जाते हैं। उसकी विशालता इतनी है कि अगर हम अलग-अलग कोणों पर खड़े होकर देखते हैं तो अलग-अलग मार्ग आते हुए दिखाई देते हैं । किन्तु मूल को मिलाकर देखें तो ऐसा लगेगा कि एक ही रास्ता है और कोई रास्ता नहीं है । इसलिए जैन योग, बौद्ध योग, और भी कई योग पद्धतियों में तथा तंत्र में भी एक शब्द आता है -एकायन । यानी एक ही मार्ग है और कोई दूसरा मार्ग नहीं है। अगर इसमें प्रवेश पाना है तो एक ही रास्ता है, दूसरा कोई मार्ग नहीं । यह एकायन प्रवेश है । दूसरा कोई अयन नहीं है।
__ आप निश्चित मानिए कि चित्त का विलय नहीं होगा तो शक्तियों का जागरण नहीं होगा । मन की चंचलता समाप्त नहीं होगी तो शक्तियां विकसित नहीं होगी, शक्तियां प्रकट नहीं होंगी। मानसिक विलय ही एकमात्र रास्ता है सारी शक्तियों के प्रकट होने का । यदि हम उस रास्ते को छोड़ देते हैं तो शक्तियों के अभ्युदय का, उनके जागरण का हमारे पास कोई विकल्प नहीं रहता । इसलिए मैं आपसे यह कहना चाहता हूं कि यह एक ही रास्ता हैचित्त को विलीन करना, मन को शान्त करना, मन को समाप्त करना, या मन के अस्तित्व को नकारना । रास्ता एक है, किन्तु मन को शांत कैसे करना, इसके लिए हम कोई नियम नहीं बना सकते । कोई नियम नहीं है इसका। ___ आप आसन के द्वारा भी मन को शान्त कर सकते हैं, प्राणायाम के द्वारा भी मन को शान्त कर सकते हैं, आत्म-दर्शन के द्वारा भी मन को शान्त कर