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महावीर की साधना का रहस्य
सकते हैं और मन को मन देखकर भी उसे शान्त कर सकते हैं।
महापथः एक है । छोटी-मोठी पगडंडियां हजारों-हजारों मिलती हैं । किन्तु मूल एक है-चित्त को शान्त करना और उसके बिना कोई गति नहीं है। ऐसे लोग भी हुए हैं साधना के पथ में, जिन्होंने एक ही आसन का प्रयोग किया और अपने लक्ष्य तक पहुंच गए, चित्त-विलय की भूमिका में पहुंच गए । यह असम्भव बात नहीं है । आप अर्धमत्स्येन्द्र आसन का नियमित रूप से प्रयोग विश्वास के साथ करते चले जाइए। कुछ वर्षों बाद यह स्थिति आ सकती है कि आपका चित्त अपने-आप शान्त और सहज हो रहा है। जिस सुषुम्ना में प्रवेश पाकर मन विलीन होता है, उसके जागरण की क्रिया अर्धमत्त्येन्द्र आसन में सहज ही होती है । मच्छेन्द्रनाथ ने इसी आसन को अपनाया था। और इसी आसन में बैठकर वे अपने चित्त को समाहित करते थे। चित्त के समाधान की यह भी एक प्रक्रिया है । कोई व्यक्ति आसन नहीं करता, केवल श्वास पर ही लग जाता है, श्वास की प्रक्रियाओं पर लग जाता है, श्वास को शान्त करता है, श्वास का दर्शन करता है, वह भी उसी भूमिका पर पहुंच जाता है । बहुत सारे बौद्ध साधक अनापानसती की साधना के द्वारा ठीक वहां पहुंच जाते थे जहां कि ध्यान करने वाला पहुंचता है। वह श्वासदर्शन की प्रक्रिया से, लम्बे समय तक. घंटों-घंटों तक श्वास का दर्शन करतेकरते उस स्थिति तक पहुंच जाता है । आसन, श्वास-दर्शन या तीसरा-चौथा कोई साधन-ये भाषाएं अनेक हैं, फलित एक है।
एक राजा को स्वप्न आया। उसने देखा, मेरे सारे दांत गिर गए हैं। मन में प्रश्न उपिस्थत हुआ—यह क्या ? प्रातः होते-होते राजा ने ज्योतिषियों को बुलाया । बुलाकर एक ज्योतिषी से कहा, "मुझे एक बहुत बुरा स्वप्न आया है। मैंने देखा कि मेरे सारे दांत गिर गए हैं। इसका फल क्या होगा?" ज्योतिषी बोला-"महाराज ! बहुत बुरा हुआ । सचमुच बुरा स्वप्न है । बहुत ही अनिष्टकारक है ।" राजा ने पूछा- “परिणाम क्या होगा ?" ज्योतिषी ने कहा-"महाराज ! क्या कहूं ? कहना तो नहीं चाहता। किन्तु जब आप पूछ ही रहे हैं, आपकी जिज्ञासा है तो मुझे कहना होगा । स्वप्न बहत बरा है । परिणाम यह होगा कि आपकी सब संतानें आपके देखते-देखते मर जाएंगी। आप अकेले रहेंगे ।" राजा को बहुत क्रोध आया। राजा क्रोध में पागल जैसा हो गया । उसे बहुत बुरा लगा । उसने आदेश दिया"ज्योतिषी को जेल में डाल दो। यह कितनी अनिष्ट बात कहता है ।"