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महावीर की साधना का रहस्य . देखा कि भोजन सामने आते ही लार टपक पड़ती है और उसकी खाने की पूरी तैयारी हो जाती है । अगर भोजन नहीं आता तो भी ठीक समय पर • लार टपक पड़ती । लार क्यों टपकती ? वह संस्कार बन गया था ।
एक बीमार आदमी यह नहीं चाहता कि अमुक-अमुक चीजें खाऊं । किंतु जब खाने बैठता है तो उसका मन प्रबल हो उठता है और अपनी इच्छा को : रोककर भी वह खा लेता है। अपनी भावना को दबाकर भी वह खा लेता : है । सारी कठिनाइयों को सहकर भी वह खा लेता है और जो नहीं खाना चाहिए, वह भी खा लेता है । ऐसा कौन करता है ? यह संस्कार करता है । : इन्द्रियां नहीं करती हैं, संस्कार करता है । तो हमें सारा ध्यान केन्द्रित करना चाहिए था संस्कार पर, वृत्ति पर और मन पर । किन्तु कर दिया इन्द्रियों पर ।
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: आपने पहले सुना था केशी स्वामी के प्रश्न को बहुत सुन्दर उत्तर दिया था गौतम स्वामी ने । उन्होंने यह नहीं कहा कि इन्द्रियों को पहले जोतो, सब : जीत लिया जाएगा । उन्होंने कहा - 'केशी ! सबसे पहले मन को जीतो । : जब मन को जीत लोगे, मन की चंचलता समाप्त हो जाएगी तो कषाय अपने आप ही समाप्त हो जाएगा । मन जीता कि कषाय जीत लिया । कृषाय कुब उभरते हैं ? मन चंचल होता है तब कषाय उभरते हैं । मन स्थिर-शांत होता है तो कषाय नहीं उभरते, आंवेग नहीं आता । जब मन वंश में हो गया, मन स्थिर और शांत हो गया, तब कषाय अपने आप ही शांत हो गए । और जब कषाय शान्त हो गए, तब इन्द्रियां अपने आप ही विजित हो गईं । इन्द्रियों के लिए अलग से हमें प्रयत्न करने की जरूरत नहीं है ।'
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तंत्रशास्त्र में ठीक कहा गया है— इन्द्रियों की प्रवृत्ति में और निवृत्ति में मन ही प्रभु है । मन ही समर्थ है । मन ही इन्द्रियों को संचालित करता है और मन ही इन्द्रियों को निरुद्ध करता है । यदि मन नहीं चलता है तो इन्द्रियां नहीं चलतीं । मन रुका हुआ है, इन्द्रियां रुकी हुई हैं । मन चंचल है तो इन्द्रियां चंचल हैं । मूल बात है— संस्कार को पकड़ने की । इन्द्रियों को • पकड़ने में कोई लाभ नहीं है ।
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आचार्य भिक्षु ने उन लोगों पर बहुत कड़ा प्रहार किया जो इन्द्रियों पर दोषारोपण करते थे । उनका एक ग्रन्थ है 'इन्द्रियवादी की चौपाई ।' बहुत सुन्दर ग्रन्थ है | आचार्य भिक्षु की कृतियों में वह एक श्रेष्ठ कृति है । उस कृति में उनका दार्शनिक रूप निखरा है । आचार्य भिक्षु को हम एक दार्श