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- श्वास- संवर
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उसके साथ प्राप्त होता है । श्वास को जीते बिना आसन को कभी नहीं जीता
जा सकता ।
इसलिए हमें श्वास को सूक्ष्म करने का प्रयत्न करना चाहिए, श्वास को - देखने का प्रयत्न करना चाहिए, श्वास को श्वास को शान्त और मंद करने का प्रयत्न करना चाहिए। श्वास के शान्त होते ही आपकी आन्तरिक वृत्तियां शान्त हो जाएंगी । कषाय कम हो जाएगा । आप आत्मज्ञान की पद्धति में चलिए । कषाय की कमी का मतलब है-— श्वास की कमी। क्योंकि जब हमारा कषाय कम होगा तो श्वास तीव्र कैसे हो सकता है ? कषाय और मानसिक आवेग से होने वाला श्वास कभी भी शान्त नहीं होगा ।
बहुत पुराने जमाने की बात है। चीन का एक प्रधानमन्त्री था । उसका नाम था 'गोत्से' । वह ध्यान सम्प्रदाय के एक महान् साधक के पास गया । उनका भक्त था वह । जाकर बोला, "भन्ते ! अहं की परिभाषा जानना चाहता हूं । अहं क्या है ? साधक गम्भीर हो गया । बहुत पहुंचा हुआ साधक था । उसने कहा, "क्या फालतू बकवास कर रहे हो । चले जाओ यहां से ! " इतना डांटा कि वह आश्चर्य में पड़ गया । उसने सोचा, मैंने कोई अपराध तो नहीं किया । मैंने तो साधारण सी बात पूछी कि अहं की परिभाषा क्या है ? और बहुत विनय के साथ पूछी। कोई अविनय भी नहीं किया । मेरे मन में कोई दुर्भावना भी नहीं थी । मैंने बहुत सद्भावना के साथ पूछा था । मैंने समझा था कि बहुत पहुंचे हुए साधक हैं, बहुत बड़े आत्मज्ञानी हैं, तत्त्वज्ञानी हैं, और साधना में प्रवीण हैं, परन्तु सब धोखा था । आज इनका असली रूप पकड़ में आ गया । मुखौटा हट गया । सचाई सामने आ गयी । छोटी-सी बात के लिए मेरा इतना तिरस्कार कर दिया । प्रधानमन्त्री का मन गुस्से से भर गया । साधक देख रहे थे और उन्होंने जब देखा कि गुस्से की मुद्रा बिलकुल ठीक बन गयी है, तो बोले, 'प्रधानमन्त्री महोदय ! इसी का नाम है 'अहं' ।” प्रधानमन्त्री साधक के पैरों पर गिर पड़ा ।
आप देखिए, जो व्यक्ति अहं की परिभाषा पूछने आया, शान्त था । श्वास शान्त था, और बिलकुल स्वाभाविक मुद्रा में था । अहं की परिभाषा पूछतेपूछते ही मुद्रा में तनाव आ गया । श्वास तेज हो गया । भृकुटी तन गयी । परिवर्तन । शरीर में परिवर्तन, श्वास में परिवर्तन, भावों में परिवर्तन । यह सारा क्यों हुआ ? श्वास तेज क्यों हुआ ? जैसे ही मन में आवेश उतरा, सारी स्थितियां बदल गयीं ।