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महावीर की साधना का रहस्य हो जाते कि उन्हें कोई भान ही नहीं रहता कि बाहर क्या हो रहा है ? उन्हें कोई भान नहीं रहता । उनका नाम ही 'पगला बाबा' था। जहां भक्ति का इतना तीव्र आवेश होता है, वहां मन बिलकुल शांत हो जाता है । इस प्रकार मार्ग अनेक हैं।
मूल बात यह है कि उसमें तादात्म्य पूरा आ जाना चाहिए। वह मात्रा तक पहुंच जाना चाहिए। हम करते क्या हैं ? पानी चाहिए। लाडनूं में पानी निकलता होगा कम-से-कम चालीस पचास हाथ खोदने से । पांच हाथ का गड्डा खोदने से शायद ही पानी निकले । एक जगह पांच हाथ खोदा, पानी नहीं निकला, उसे छोड़ दिया। दूसरी जगह फिर पांच हाथ खोदा, वहां भी पानी नहीं निकला। उसे छोड़ा। फिर तीसरा गड्ढा खोदा । हमने सैकड़ों खड्ढे खोद डाले परन्नु पानी कहीं भी तही निकला। हम कहेंगे कि लाडनूं में पानी नहीं है । क्या यह सत्य है कि लाडनूं में पानी नहीं है ? अगर हम एक गड्ढा भी खोद लेते जितना खोदने से पानी निकलता, उतनी लम्बाई और गहराई तक चले जाते तब पानी निकल आता। फिर यह शिकायत नहीं होती कि लाडनूं में पानी नहीं है । हम पूर्णरूपेण कहीं भी लगते नहीं हैं। कभी थोड़ा-सा गड्ढा ध्यान का खोद लिया, थोड़ा-सा गड्ढा भक्ति का खोद लिया, थोड़ा-सा गड्ढा समर्पण का खोद लिया। पूरा कभी नहीं खोदते और फिर कहते हैं कि पानी नहीं मिला । फिर कहते हैं आत्मा नहीं है, भगवान् नहीं है, परमात्मा नहीं है । आप रास्ता कोई-सा अपनाएं । सारे योग के रास्ते हैं, आत्म-साधना के रास्ते हैं । जो भी रास्ता लें, इतनी पूर्णता से लें कि उसके पीछे प्राण न्योछावर कर दें।