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श्वास-संवर
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में, अल्पाहार में श्वास की गति मंद होती है, और आवेश, श्रम आदि-आदि परिस्थितियों में, मानसिक आवेगों की परिस्थितियों में श्वास की गति तीव्र
और तेज हो जाती है । जो व्यक्ति उपवास करता है, वह अपने आप ही श्वास का संयम कर लेता है । या यह मानिए कि अपने आप ही उसके श्वास का संयम हो जाता है । यह शान्ति मानसिक शान्ति है और वह आती है श्वास के द्वारा, श्वास के संयम के द्वारा । दोनों में मैं समझता हूं कोई अन्तर नहीं है। ___महावीर ने कहा-आत्मा को देखो। कुछ साधकों ने कहा-मन को देखो। और कुछ साधकों ने कहा-श्वास को देखो। मैं समझता हूं कि तीनों में कोई अन्तर नहीं है । आप जैसे ही थोड़े गहरे में जाकर आत्मा को देखेंगे, आप स्वयं यह अनुभव करेंगे कि आपका श्वास शांत होता जा रहा है । जैसे ही आप भीतर की ओर देखेंगे, आपका श्वास शांत हो जाएगा । जैसे ही आप मन को मन से देखेंगे, मन की क्रियाओं का अध्ययन करेंगे, आपका श्वास शांत हो जाएगा। और आप श्वास को देखेंगे तो भी आपका श्वास शांत हो जाएगा। यह आत्म-दर्शन की प्रक्रिया, यह मनोदर्शन की प्रक्रिया
और श्वास-दर्शन की प्रक्रिया-ये अलग-अलग प्रक्रियाएं लगती हैं, किन्तु परिणामतः तीनों में श्वास शांत हो जाता है । जो व्यक्ति श्वास का दर्शन करता है, वह भी फलतः अपने अस्तित्व-दर्शन की ओर मुड़ता है । जो आत्मदर्शन करता है, वह भी अपने अस्तित्व-दर्शन की दिशा में जाता है और जो मन को देखता है, वह भी अपने अस्तित्व-दर्शन की दिशा में चला जाता है। अस्तित्व की दिशा से ये तीनों सूत्र बंधे हुए हैं । आप इन तीनों में से किसी को भी पकड़ लीजिए, आप वहां पहुंच जाएंगे जहां आपको पहुंचना है। __ यह भेद क्यों आया ? यह अपनी-अपनी रुचि की बात है। अपने लक्ष्य और अपने मूल्यांकन की बात है । आप जानते हैं कि मूल्य की दृष्टियां अलगअलग होती हैं । कोई व्यक्ति किसी को मूल्य देता है और कोई व्यक्ति किसी को मूल्य देता है । मूल्य के दृष्टिकोण सबके समान नहीं होते । ___महराष्ट्र का एक व्यक्ति था रामजा । था चारवाहा किन्तु बहुत बड़ा धनी, बहुत सम्पन्न । उसने एक बार अपने इष्ट की आराधना के लिए मूर्ति बनायी । वह खंडोबा का उपासक था जो महाराष्ट्र के एक विशिष्ट देवता माने जाते हैं। उसने मूर्ति सोने की बनायी । खंडोबा का वाहन है-घोड़ा । उसने घोड़ा भी सोने का बनायो । मूर्ति भी सोने की और घोड़ा भी सोने