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महावीर की साधना का रहस्य
प्रारम्भ | और दोनों के बीच में कोई भी अंतराल नहीं । बीच में कोई अवकाश नहीं । एक का अन्त हुआ और दूसरे का प्रारम्भ हो गया । एक का अन्तिम चरण और दूसरे का प्रारम्भिक चरण । दोनों के बिन्दु बराबर मिल जाते हैं । एक रेखा बना लेते हैं । एक वर्तुल बन जाता है । वह है कोटि- प्राणायाम यानी दीर्घ श्वास ।
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ये तीन रास्ते मैंने आपके सामने प्रस्तुत किए — कपालभाति, त्रिबंध और कोटि-प्राणायाम | ये तीन रास्ते ऐसे हैं, जिनसे कि प्राण की धारा मध्यमार्ग में, सुषुम्ना के मार्ग में, रीढ़ की हड्डी के पोल में प्रवाहित हो सकती है । और जैसे ही वहां प्रवाहित हुई और आपका लड़का गुम हो जाएगा । जिसे आपने पाला-पोसा, बहुत दुलारा, प्यार किया, जिसे थपकियां लगाकर सुलाते रहे, रुलाते रहे, हंसाते रहे, वह बच्चा गुम हो जाएगा । फिर ढूंढ़ना पड़ेगा | यह मन गुम हो जाता है । यह मन बड़ा नटखट बच्चा है । इतना नटखट बच्चा शायद कोई नहीं है जितना कि यह मन है । ऐसा गायब हो जाता है कि पता नहीं लगता है कि मन है कहां ? लोग पूछते हैं कि मन चंचल है ? मन वश में नहीं होता । मन टिकता नहीं है । आपको खोजना होगा कि मन आखिर है कहां ? क्या मन का कोई अस्तित्व है ? मन कोई चीज है क्या ? ढूंढने पर भी आपको मेंहीं मिलेगा । जब कि प्राण की धारा आपके मध्य में प्रवाहित हो जाऐगी, प्राण जब अपने रास्ते चला जाएगा तो फिर वह रीढ़ की हड्डी में नियंत्रित हो जाएगा । फिर सम्पूर्ण शरीर में अस्तित्व को खुलकर प्रकट होने का मौका मिल जाएगा ।
• प्राण जीतने से मन जीता जा सकता है या मन जीतने से प्राण पर विजय पायी जा सकती है। ?
प्राण, मन और वीर्य — इन तीनों का बहुत निकट का रिश्ता है । और ये सब एक ही परिवार के सदस्य हैं । एक साथ ही जीने-मरने वाले हैं । एक का दूसरे पर असर होता है, प्रभाव होता है । जिसने प्राण को जीत लिया, उसके लिए मन और वीर्य पर अलग से ध्यान देने की जरूरत नहीं है । प्रश्न है कि मन पर स्वतन्त्र रूप से कैसे विजय पायी जाए ? एक मार्ग है प्राण का और दूसरा मार्ग है तत्त्वज्ञान का या आत्मज्ञान का । जो आत्मज्ञानी होता है और जिसके मन में प्रबलतम वैराग्य उत्पन्न हो जाता है उसे लगता है कि यह कुछ भी नहीं है । जो दीख रहा है, सारा का सारा निकम्मा है । वैराग्य