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महावीर की साधना का रहस्य मुझे बारह वर्ष हो गए। बारह वर्षों में मुझे यह उपलब्धि हुई है।' आत्मज्ञानी बोला, 'बहुत भोले आदमी हो । जिस काम के लिए दो पैसे खर्च करके सिद्धि पायी जा सकती है उसके लिए बारह वर्ष का अमूल्य समय बिताना, इससे बड़ी मूर्खता दुनिया में और क्या होगी?' ___ सारी प्रशंसा पर पाला पड़ गया । सिर झुक गया। आत्मज्ञानी साधक ने कहा, 'अक्छा होता कि तुम किसी नाविक को दो पैसे देते और वह तुम्हें नदी पार पहुंचा देता । तुम्हें इतना श्रम नहीं करना होता । भोले आदमी, इतने छोटे-से काम के लिए बारह वर्ष का अमूल्य समय तुमने निकम्मा गंवा दिया ।'
अब वह क्या बोल सकता था ? कुछ नहीं बोला।
सम्पूर्ण भारतीय इतिहास में और भारतीय तत्त्वचिंतन में आत्मा पर, आत्मज्ञान पर और आत्म-केन्द्रितता पर जितना गहरा दर्शन महावीर ने दिया, शायद किसी भी दार्शनिक इतिहास-पुरुष ने नहीं दिया। जहां आत्मदर्शन होता है, वहां चित्त-पर्याय की बात गौण हो जाती है । तो फिर महावीर तपस्या क्या करते थे ? महावीर तपस्या करते थे स्थूल शरीर की प्रवृत्ति का निरोध करने के लिए, संवर करने के लिए, न कि शरीर को सताने के लिए। शरीर को सताना उनका कोई उद्देश्य नहीं था। शरीर बेचारा अपने आप ही मरने वाला है, उसे मारने में लाभ क्या ?
महषि उद्दालक निर्विकल्प समाधि के लिए बहुत आतुर थे। उन्होंने सोचा कि मैं निर्विकल्प समाधि में जाऊं । सोच रहे थे पर जा नहीं पा रहे थे। क्योंकि निर्विकल्प समाधि में जाया जा सकता है अप्रयत्न के द्वारा और वे कर रहे थे प्रयत्न । निर्विकल्प समाधि में जाया जा सकता है प्रवृत्ति के निरोध के द्वारा और वे कर रहे थे प्रवृत्ति । निर्विकल्प समाधि में जाया जा सकता है अप्रयास के द्वारा और वे कर रहे थे प्रयास । उलटी गति चल रही थी। करना था संवर और कर रहे थे निर्जरा । काम नहीं हो रहा था । थक गए। सोचा कि चलो ऐसे नहीं होता, अनशन कर लें। अनशन की बात सोच ली और अनशन शुरू कर दिया । जंगल में बैठे थे, वृक्ष पर तोता बैठा था । तोते ने देखा—यह क्या ? वह बोला, 'महर्षि ! क्या कर रहे हो ?'
'अनशन कर रहा हूं।' 'किसलिए कर रहे हो ?' 'इस शरीर को छोड़ रहा हूं।'