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________________ ५० महावीर की साधना का रहस्य मुझे बारह वर्ष हो गए। बारह वर्षों में मुझे यह उपलब्धि हुई है।' आत्मज्ञानी बोला, 'बहुत भोले आदमी हो । जिस काम के लिए दो पैसे खर्च करके सिद्धि पायी जा सकती है उसके लिए बारह वर्ष का अमूल्य समय बिताना, इससे बड़ी मूर्खता दुनिया में और क्या होगी?' ___ सारी प्रशंसा पर पाला पड़ गया । सिर झुक गया। आत्मज्ञानी साधक ने कहा, 'अक्छा होता कि तुम किसी नाविक को दो पैसे देते और वह तुम्हें नदी पार पहुंचा देता । तुम्हें इतना श्रम नहीं करना होता । भोले आदमी, इतने छोटे-से काम के लिए बारह वर्ष का अमूल्य समय तुमने निकम्मा गंवा दिया ।' अब वह क्या बोल सकता था ? कुछ नहीं बोला। सम्पूर्ण भारतीय इतिहास में और भारतीय तत्त्वचिंतन में आत्मा पर, आत्मज्ञान पर और आत्म-केन्द्रितता पर जितना गहरा दर्शन महावीर ने दिया, शायद किसी भी दार्शनिक इतिहास-पुरुष ने नहीं दिया। जहां आत्मदर्शन होता है, वहां चित्त-पर्याय की बात गौण हो जाती है । तो फिर महावीर तपस्या क्या करते थे ? महावीर तपस्या करते थे स्थूल शरीर की प्रवृत्ति का निरोध करने के लिए, संवर करने के लिए, न कि शरीर को सताने के लिए। शरीर को सताना उनका कोई उद्देश्य नहीं था। शरीर बेचारा अपने आप ही मरने वाला है, उसे मारने में लाभ क्या ? महषि उद्दालक निर्विकल्प समाधि के लिए बहुत आतुर थे। उन्होंने सोचा कि मैं निर्विकल्प समाधि में जाऊं । सोच रहे थे पर जा नहीं पा रहे थे। क्योंकि निर्विकल्प समाधि में जाया जा सकता है अप्रयत्न के द्वारा और वे कर रहे थे प्रयत्न । निर्विकल्प समाधि में जाया जा सकता है प्रवृत्ति के निरोध के द्वारा और वे कर रहे थे प्रवृत्ति । निर्विकल्प समाधि में जाया जा सकता है अप्रयास के द्वारा और वे कर रहे थे प्रयास । उलटी गति चल रही थी। करना था संवर और कर रहे थे निर्जरा । काम नहीं हो रहा था । थक गए। सोचा कि चलो ऐसे नहीं होता, अनशन कर लें। अनशन की बात सोच ली और अनशन शुरू कर दिया । जंगल में बैठे थे, वृक्ष पर तोता बैठा था । तोते ने देखा—यह क्या ? वह बोला, 'महर्षि ! क्या कर रहे हो ?' 'अनशन कर रहा हूं।' 'किसलिए कर रहे हो ?' 'इस शरीर को छोड़ रहा हूं।'
SR No.032716
Book TitleMahavir Ki Sadhna ka Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragya Acharya, Dulahrajmuni
PublisherTulsi Adhyatma Nidam Prakashan
Publication Year1985
Total Pages322
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size20 MB
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