________________
शरीर का मूल्यांकन
तपस्याएं करते थे पर शरीर को शक्तिहीन बनाकर कभी भी लेटे नहीं रहे । तपस्या में भी उनका ध्यान निरन्तर चलता था। साधना-काल में तपस्या से शरीर कुछ कृश हुआ पर शक्तिहीन नहीं।
स्कन्दक परिव्राजक भगवान् महावीर के पास गया । उसने देखा कि भगवान् बहुत सुन्दर हैं। शरीर पर आभा खिल रही है। वह मांसल है । इसका कारण क्या है ? भगवान् अब प्रतिदिन भोजन करने लगे हैं । भगवान् ने साढ़े बारह वर्ष तक तपस्या की, कृश हो गए किन्तु अब भगवान् रोज भोजन कर रहे हैं, इसलिए सुन्दर बन गए हैं। गोशालक ने यही तो कहा आर्द्रकुमार से—'देखो, तुम्हारे महावीर कैसे हो गए हैं ? एक दिन था तपस्याएं करते थे । जंगल में घूमते थे। अकेले घूमते थे। साधारण भोजन करते थे । अब सब लोगों के बीच में बैठते हैं और श्रेष्ठ भोजन करते हैं। तपस्या छोड़ दी, उपवास छोड़ दिया और आराम करने लग गए हैं। पहले वाले अब महावीर नहीं रहे। इसलिए तुम अब इनके पास मत जाओ।'
महावीर ने शरीर के प्रति उपेक्षा की, ऐसा नहीं कहा जा सकता। भगवान् ने शरीर को साधन बनाया। __ भगवान् ने नासाग्र पर दृष्टि को टिकाया। प्रश्न होता है--क्यों टिकाया ? क्योंकि यह चेतना का केन्द्र है। प्राणवायु का मुख्य केन्द्र हैनासाग्र । यह नाक का हमारा अगला भाग (होंठ के ऊपर के भाग से भृकटि के नीचे तक का भाग) नासाग्र है । यह प्राणवायु का मुख्य स्थान है। यहां मन को टिकाते ही प्राणवायु स्थिर हो जाती है, प्राणवायु रुद्ध हो जाती है और मन का विलय हो जाता है। भगवान् ने इसका आलंबन लिया । भगवान् ने दूसरे-दूसरे आलंबन भी लिये हैं । ऊर्ध्व शरीर का आलंबन लिया मध्य शरीर का आलम्बन लिया और अधोशरीर का आलम्बन लिया ।
यह हमारा शरीर साधना के लिए बहुत सहयोगी और बहुत उपयोगी है । इसका मूल्यांकन करना चाहिए । हम जिस दृष्टि से इसका मूल्यांकन कर रहे हैं, उसकी अपेक्षा अब नये सिरे से उसका मूल्यांकन करना चाहिए । शरीर बहुत मूल्यवान् है, बहुत उपयोगी है, और उसकी शक्तियों को बनाये रखना हमारी साधना के लिए भी बहुत मूल्यवान् है।
__ एक शरीर के बारे में और जानना आवश्यक है । वह है तैजस शरीर । वह भी सूक्ष्म है । वह प्राणशक्ति का केन्द्र है । जितनी ऊर्जा उत्पन्न होती है, जितना प्राण उत्पन्न होता है, उसे उत्पन्न करने वाला जेनेरेटर है तेजस