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शरीर का मूल्यांकन
घट आज भी हमारे हृदय में सुरक्षित है । यह हमारे आनन्द का केन्द्र है । और इस स्थान पर ध्यान करने से आनन्द की अभिव्यक्ति होती है, आनन्द प्रकट होता है ।
चेतना की अभिव्यक्ति का केन्द्र है - बृहद् मस्तिष्क । हमारी सारी की सारी चेतना यहां अभिव्यक्त होती है । हम कहते हैं कि सम्पूर्ण शरीर में चेतना है । किन्तु मस्तिष्क नहीं है तो कहीं भी चेतना नहीं है । आप आंख को देखते हैं । आंख का गोला बिलकुल ठीक दिखायी देता है । परन्तु मस्तिष्क के अन्दर जो आंख का केन्द्र है, उसकी नाड़ी सूख गई तो आंख की शक्ति समाप्त हो जाएगी । मैंने ऐसे व्यक्ति को देखा है, जिसकी आंख बिलकुल ठीक दिखायी पड़ती है, किन्तु मस्तिष्क के अन्दर नाड़ी सूख गयी है इसलिए उसकी आंख काम नहीं कर रही है । कान का पर्दा बिलकुल ठीक ढंग से है । नाड़ी सूख गयी तो वह काम नहीं देगा । सुनायी नहीं पड़ेगा ।
हमारी बहुत सारी शक्तियां सुषुप्त रह जाती हैं । उन्हें हम जानते नहीं हैं । प्राणायाम करने का मुख्य अर्थ है — वायु- कोशों को प्राणवायु से भरना और ज्यादा से ज्यादा भरना । जितना ज्यादा भर सकेंगे, उतनी ही ज्यादा हमारी ऊर्जा बढ़ेगी । उसमें एक अग्नि प्रज्वलित होगी और हमारी शक्ति को जागृत करने का अवसर देगी ।
शक्ति के उपयोग के
हम तपस्या क्यों करते हैं ? इसीलिए कि हम अपनी शक्ति का ठीक प्रकार से उपयोग कर सकें । ये सारे के सारे अपनी साधन हैं | अगर हम इन्हें ठीक प्रकार से समझ लें, तो अपनी शक्ति को अधिक से अधिक उपयोगी कर सकते हैं । अगर मैं भूखा नहीं रह सकता और केवल तपस्या का आग्रह करूं तो अपनी शक्ति का उपयोग नहीं कर सकता । जो व्यक्ति भूखा रहकर अपनी शक्ति का अच्छा उपयोग कर सकता है और वह अगर नहीं करता है तो अपनी शक्ति का लाभ नहीं उठा सकता । आप किसी भी बात को एकांगी दृष्टि से मत पकड़िए । आसन भी करना, प्राणायम भी करना, शरीर के उपयुक्त करना, शरीर को जिन-जिन तत्त्वों की आवश्यकता है उन भी देना, ये सारी बातें आवश्यक हैं । अब चुनाव करना आपका काम है कि आपको किस बात की अपेक्षा है और किसके द्वारा आप स्थूल शरीर को ठीक रखकर सूक्ष्म शरीर से भी ठीक काम ले सकते हैं ।
तपस्या भी करना,
संतुलित भोजन भी
तत्त्वों का पोषण
इस प्रकार दो शरीरों के सम्बन्ध में मैंने थोड़ी चर्चा की । सूक्ष्म