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शरीर का मूल्यांकन
वह सूक्ष्म शरीर का भी भेदन कर देती है । आत्मा सूक्ष्म शरीर पर प्रहार करती है । चोट करती है, तो सूक्ष्म शरीर को अपने आच्छादन को, अपने ढक्कन को हटाना पड़ता है। ___ जैसे-जैसे अवरोध दूर होता है, वैसे-वैसे ही उसका ढक्कन दूर होता है । और जैसे ही वह आवरण या ढक्कन दूर होता है, वैसे ही आत्मा का प्रकाश. आत्मा का आनन्द और आत्मा की शक्ति स्थूल शरीर में प्रकट होने लगती है । इसलिए स्थूल शरीर प्रकट होने का, अभिव्यक्ति का बड़ा माध्यम बन जाता है।
आत्मा और स्थूल शरीर के बीच में सूक्ष्म शरीर एक मार्ग है। इस मार्ग के साफ होने पर शक्ति, आलोक और आनन्द स्थूल शरीर तक पहुंच जाते हैं । इसलिए स्थूल शरीर हमारे लिए भगवान् का मंदिर बन जाता है, जहां भगवान् की प्रतिमा शाश्वत विराजमान है और शाश्वत अपना कार्य कर रही है । तो फिर स्थूल शरीर को कुछ लोगों ने गहित क्यों माना ? वह भी निरर्थक नहीं है । क्योंकि उसमें जहां आत्मा का प्रकाश पड़ता है, वहां सूक्ष्म शरीर का प्रकाश भी पड़ता है। सूक्ष्म शरीर भी इसे अपना विषय बनाए हुए है । विकार जो है वह सूक्ष्म शरीर में है, स्थूल शरीर में कोई भी विकार नहीं है । वासना सूक्ष्म शरीर में है । स्थूल शरीर में कोई भी वासना नहीं है । क्रोध सूक्ष्म शरीर में है, स्थूल शरीर में कोई क्रोध नहीं है। हमारे जितने विकार, हमारी जितनी वासनाएं, हमारे जितने संस्कार, हमारी जितनी दुर्भावनाएं ये सारी सूक्ष्म शरीर में हैं, स्थूल शरीर में नहीं हैं। किंतु ये सारी की सारी अभिव्यक्त होती हैं स्थूल शरीर के द्वारा । और सूक्ष्म शरीर ने स्थूल शरीर में अपने लिए ऐसा निर्माण भी किया है कि वे सारी की सारी वातें इसमें अभिव्यक्त हो सकें।
सेक्स सेंटर (Sex-Centre) वासना की अभिव्यक्ति का केन्द्र है। क्रोध की अभिव्यक्ति का केन्द्र है-ललाट । साहित्य में स्थायी, सात्विक और संचारी भावों का जो वर्णन है, वह सारा का सारा अभिव्यक्तियों का वर्णन है। जिस व्यक्ति को गुस्सा आता है, क्रोध आता है, आंखें लाल हो जाती हैं, होंठ फड़फड़ाने लग जाते है, शरीर कांपने लग जाता है। क्रोध अभिव्यक्त होता है । अभिमान की अभिव्यक्ति का भी केन्द्र है। जैसे ही अहं का भाव आया, गर्दन में अकड़न आ जाती है। शक्ति का भी केन्द्र है । शक्ति का केन्द्र है-जंघा । वह जितनी मजबूत होगी, उतना ही व्यक्ति