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महावीर की साधना का रहस्य
चलने में सशक्त होगा।
एक दूत था । उसका नाम लोहजंघ था। उसकी जंघा लोहे जैसी थी। वह एक रात में सौ यौजन चल लेता था। आठ सौ मील एक रात में चल लेता था। आप कल्पना नहीं कर सकते । किन्तु यह असत्य नहीं है, झूठ नहीं है। हो सकता है यह । प्राचीन साहित्य में आज भी ऐसी अनेक पद्धतियां वर्णित हैं, कि अमुक-अमुक प्रकार के द्रव्यों का, औषधियों का प्रयोग करने से चलने की शक्ति बढ़ जाती है, क्षमता बढ़ जाती है। आज उसका परीक्षण और अन्वेषण करने की जरूरत है। कोई असम्भव नहीं कि उन द्रव्यों का प्रयोग करने से यह स्थिति उत्पन्न हो जाए।
हमारे शरीर में इतनी शक्ति है कि अगर उसका ठीक से विकास किया जाए तो यह कोई भी असम्भव बात नहीं है । हिरन, घोड़े और सांप तो दौड़ते ही हैं पर आदमी उनसे भी ज्यादा दौड़ सकता है। आदमी सबसे ज्यादा खतरनाक और सबसे ज्यादा शक्तिशाली है और सबसे अधिक कर सकने वाला है। दूसरों को वह दौड़ाने वाला है, दूसरों को सिखाने वाला है और दूसरों से अनेक करतब कराने वाला है। स्वयं जाग जाए तो स्वयं कर दे अन्यथा दूसरों से तो करवाता ही है । यह जंघा हमारी शक्ति का केन्द्र है।
हमारे शरीर में शक्ति का दूसरा केन्द्र है-पृष्ठरज्जु (Spinal cord) । मैं पहले बहुत बात सोचता था, कर्मशास्त्र के अध्ययन के समय, कि हमारी हर शक्ति, हमारा हर चैतन्य और हमारा हर आनन्द किसी न किसी शरीर के अवयव के माध्यम से प्रकट होना चाहिए । उसका सम्बन्ध क्या है ? संबंधों पर जब विचार किया, बहुत वर्षों तक विचार किया, पर कुछ समझ में नहीं आया। पता नहीं चला कि शक्ति केन्द्र क्या है ? आनन्द-केन्द्र कौन-सा है और प्रकाश-केन्द्र कौन-सा है ? किंतु योग और कर्म-शास्त्र के समन्वित अध्ययन से ये दोनों बातें बिलकुल स्पष्ट हो गयीं।
शक्ति का केन्द्र, आनन्द का केन्द्र और प्रकाश का केन्द्र कौन-सा है—इस विषय में कुछ बातें मैं आपके सामने रखूगा । पृष्ठरज्जु-रीढ़ की हड्डी हमारा शक्ति केन्द्र है । कर्मशास्त्र में लिखा है कि जो व्यक्ति 'वज्र-ऋषभनाराचसंहनन' वाला नहीं होता, वह उच्चतम ध्यान का अधिकारी नहीं होता। वास्तव में ध्यान का अधिकारी होता है उत्तम संहनन वाला-वज्र-ऋषभनाराचसंहनन वाला । जिसकी हड्डियां मजबूत होती हैं, सुदृढ़ होती हैं, वह ध्यान कर सकता