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महावीर की साधना का रहस्य
बोध-ये सारी बातें हमारे सामने स्पष्ट हो जायेंगी और फिर मूर्छा की स्थिति से जागृति की स्थिति में हम चले जायेंगे। हम मूर्छा की यात्रा समाप्त कर जागृति की यात्रा प्रारम्भ कर देंगे। यह हमारे जीवन का पहला क्षण यानी अपूर्व क्षण आता है। अर्थात् इससे पहले हमने ऐसी यात्रा कभी नहीं की। यहीं से हमारी नयी यात्रा शुरू होती है, नया मार्ग शुरू होता है और हमारे सामने मंजिल भी नयी हो जाती है। इस अपूर्वकरण की स्थिति में आकर, इस अपूर्वकरण की स्थिति का अनुभव कर, हम अन्तर् की यात्रा को शुरू कर देते हैं, जागृति की यात्रा को शुरू कर देते हैं ।
इस प्रकार तीन यात्राएं हैं—मूर्छा की यात्रा, जागृति की यात्रा और वीतरागता की यात्रा । ये तीन यात्राएं हमारे सामने हैं । मूर्छा की यात्रा को समाप्त कर जागृति की यात्रा में प्रवेश करना ही साधना है ।
साधना क्या है ? मूर्छा की ग्रन्थि को तोड़कर जागृति के छिद्र में प्रवेश करने का नाम ही है साधना। • साधना की भूमिका को प्राप्त करने के लिए जागरिका आवश्यक है, जागना आवश्यक है। पर जब तक वह जगता नहीं है, तब तक वह आगे की यात्रा कैसे कर सकता है ? अभी आपने मनःचक्र की चर्चा की। उसके साथ ही आपने यह भी बताया कि प्राणायाम के माध्यम से हम उसको विकसित कर सकते हैं। कृपा करके आप बताएं कि प्राणायाम के लिए कौन-सी प्रक्रियाएं हैं जिनसे कि मनःचक्र खुल सकता है ?
प्राणायाम की मूल प्रक्रिया एक ही है-श्वास को लेना, निकालना और स्थिर करना । यह एक ही प्रक्रिया है । अन्तर आता है हमारे संकल्प का और धारणा का । हम प्राणायाम किस स्थान पर कर रहे हैं ? प्राणवायु को कहां ले जा रहे हैं ? कहां स्थिर कर रहे हैं ? उसके आधार पर ये सारी क्रियाएं होती हैं । प्राण की धारा को हम एक अंगुली के सिरे पर भी ले जा सकते हैं। प्राण की धारा को हम अंगूठे के अग्रभाग पर भी ले जा सकते हैं। प्राण की धारा को हम ब्रह्मरन्ध्र में भी ले जा सकते हैं। प्राण की धारा एक चलती है। प्राणवायु की धारा एक चलती है । अब कहां ले जाना, किस धारणा पर ले जाना, कहां जाकर उसे स्थिर करना, ये सारे खुलते हैं मूलतः कुंभक के द्वारा । कुंभक के बिना ये नहीं खुलते । जितने भी चक्र हैं, वे कुंभक से खुलते हैं । तो यह हमारी धारणा पर निर्भर है । धारणापूर्वक हम जहां मन करते