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महावीर की साधना का रहस्य
अनेक हैं। किसी व्यक्ति में तीव्र वैराग्य जाग गया, उसकी ग्रन्थि का अपनेआप ही भेदन हो जाता है। जरूरी नहीं है कि उस एक ही प्रक्रिया से हो । किसी व्यक्ति ने 'अर्हत्' पर तीव्रता से ध्यान किया तो स्वयं अर्हत्मय बन गया । इतनी तीव्र अनुभूति हुई कि ग्रन्थि का भेदन हो गया । अनेक मार्ग हैं। एक पद्धति या मार्ग यह है जो मैंने अभी बताया। किसी एक रास्ते से बांधा नहीं जा सकता । दूसरी बात यह है कि हम जो सम्यक्त्व की परिभाषा कर रहे हैं वह परिभाषा भी कोई नयी नहीं है । हम परिणाम को देखकर कहते हैं कि जिस व्यक्ति में तत्त्व के प्रति सम्पूर्ण श्रद्धा या आस्था पैदा हो गयी, वह सम्यक्त्वी बन गया। यह है लक्षण को देखकर लक्ष्य का बोध करना। तत्त्व को जानना सम्यक्त्व नहीं है किन्तु तत्त्व के द्वारा सम्यक्त्व की पहचान होती है । जो व्यक्ति तत्त्व को जानता है, जिसकी तत्त्व के प्रति प्रबल आस्था है, वह फिर मिथ्या-दृष्टि कैसे हो सकता है ? लक्षण के आधार पर वह लक्ष्य की परिभाषा करे, यह व्यवहार की परिभाषा होती है । मूल सम्यक्त्व कहां है ? वह तो सम्यक्त्व का कार्य था या एक कार्य के द्वारा सम्यक्त्व का जानना हो गया । प्रकाश को देखकर हम कहें कि दय हो गया, यह तो प्रकाश के द्वारा, रश्मि के द्वारा सूर्य का बोध हुआ है कि सूर्य का उदय हो गया।
सम्यक्त्व क्या है ? वह है आत्मा की निर्मलता। जिस आत्मा में इतनी निर्मलता पैदा हो गयी, जिसका तीव्र कषाय समाप्त हो गया, तीव्र आसक्ति समाप्त हो गयी, वह उतनी जो आत्मा की निर्मलता है, जागरूक अवस्था है सम्यक्त्व अवस्था है। इसीलिए हजारों वर्षों पहले जैन आचार्यों ने दो परिभाषाएं स्पष्ट कर दीं-निश्चय सम्यक्त्व और व्यावहारिक सम्यक्त्व । आत्मा का बोध होना निश्चय सम्यक्त्व है और तत्त्वों का बोध होना व्यावहारिक सम्यक्त्व है। • सम्यक्त्व का निर्णायक कौन होता है ?
निर्णय तो स्वयं को करना है । निर्णय का मानदण्ड मैंने जरूर रख दिया है । अब स्वयं ही निर्णय करें। इसका उत्तर मैं नहीं दे सकता। एक बात जरूर है कि मनःचक्र जागृत हो और उसका स्वयं को बोध न हो तो वह हमारी दोहरी अज्ञानता प्रकट हो जाती है। उसके पहले यह निर्णय कर लें कि वह हमारा जागृत है या नहीं। • सम्यक्त्व की प्राप्ति 'करण' के बाद होती है। क्या यह संगत नहीं है ? कषायशान्ति के लिए आपका अनुभव क्या है ?
कारण का मतलब है पुद्गलों से। जो हमारे मिथ्यात्व के पुद्गल हैं,