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महावीर की साधना का रहस्य
भगवान् ने उत्तर दिया, 'जागरिका तीन प्रकार की होती है—एक सुप्त जागरिका, एक बुद्ध जागरिका और एक प्रबुद्ध जागरिका । जब श्रावक सम्यक्त्व को प्राप्त कर लेता है, यह सुप्त जागरिका है । प्रमत्त संयति से प्रारम्भ कर वीतराग तक अबुद्ध जागरिका होती है । केवली की प्रबुद्ध जागरिका होती है । ये तीन जागरिकाएं हैं और इनका चुनाव करना बहुत महत्त्वपूर्ण है ।
उपनिषदों में तीन अवस्थाओं का वर्णन मिलता है— स्वप्नावस्था, सुपुप्ति अवस्था और तुरियावस्था । अगर इन तीन अवस्थाओं की हम तुलना करें तो सुप्तावस्था है स्वप्नावस्था और सुषुप्ति अवस्था । समयक्त्व है जागृत अवस्था । सम्यक्त्व या जागृति के आदि बिन्दु से लेकर और प्रबुद्ध जागरिका तक, सारी की सारी जागरिका जागृति अवस्था है । और तुरियावस्था हैं केवलज्ञानी की अवस्था । मैं समझता हूं कि सम्यक्दर्शन की सारी भावना को स्पष्ट समझने के लिए जागरिका शब्द का चुनाव बहुत उपयुक्त है ।
दूसरा प्रश्न है प्राणायाम के सम्बन्ध में । हमारी यह संस्कारित धारणा हो गयी कि जैन आचार्यों ने प्राणायाम का निषेध किया है । किन्तु यह वास्तविक बात नहीं है । जैन आचार्यों ने प्राणायाम का खंडन किया, मध्यवर्ती आचार्यों ने किया । उन्होंने प्राणायाम का खंडन नहीं किया बल्कि तेज प्राणायामों का खंडन किया। यानी जो प्राणायाम सारे शरीर को धुन डालते हैं, प्रकंपित कर डालते हैं, उतने कड़े प्राणायामों का खंडन किया । और उनके सामने एक दृष्टि भी थी और शायद अभी तक भी है। तेज हवा निकलने से बाहर के जीवों को आघात पहुंचता है, इसलिए तेज प्राणायाम नहीं करना चाहिए । इस प्रसंग में एक बात कहना चाहता हूं । एकाग्र ध्यान करना, त्राटक करना - जैन-शास्त्रों में इसका निषेध भी है और नहीं भी है । सचित्त वृक्ष सामने है, कोई सचित्त वनस्पति सामने है, उसके पास जाकर त्राटक करना या अपलक ध्यान करना निषिद्ध है । सचित्त पुद्गल पर त्राटक करना विहित है । जैन परंपरा में, साधना की प्रक्रिया में अहिंसा पर बहुत सूक्ष्मता से विचार किया गया है। त्राटक करने से प्राणधारा इतनी तेज निकली है कि वह जाकर वनस्पति के जीवों को आघात पहुंचाती है । अभी आप लोगों ने समाचारपत्रों में पढ़ा अपनी ध्यान-शक्ति के द्वारा ऊर्जा को इतना तेज फेंकती है कि सामने कोई भारी-भरकम चीज पड़ी है तो वह भी इधर-उधर हिलने-डुलने लग जाती है ।
होगा कि एक रूसी महिला
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