Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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जयधवलास हिदे कसायपाहुडे
[ बंधगो ६
५५. एवं पयडिसंक मस्त चउव्विहावयारस्स परूवणं गाहासुत्तावलंबणेण काऊण पयदत्थोवसंहारकरणट्ठमिदमाह -
* एस सुत्तफासो |
९ ५६. एसो गाहासुत्ताणमवयवत्थपरामरसो कओ त्ति भणिदं होइ । संपहि परुविदाणमदृण्हं णिग्गमाणं मज्झे एगेगपयडिपडिबद्धाणं ताव परूवणं कस्सामो ति सुत्तमुत्तरं भणइ -
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* एगेगपयडिसकमे पयदं ।
५७. एगेगपडिस्क मे अंतोभाविदतदसंकमतप्पडिग्गहापडिग्गहे पयदमिदि भणिदं होइ । तत्थ चउवीस मणियोगद्दाराणि होंति । तं जहा - समुक्कित्तणा सव्वसंकमो णोसव्वसंकमो उक्कस्ससंकमो अणुकस्ससंकमो जहण्णसंकमो अजहण्णसंकमो सादियसंकमो अणादिकमो ध्रुवसंकमो अद्ध्रुवसंकमो एगजीवेण सामित्तं कालो अंतरं णाणाजीवेहि भंगविचओ भागाभागो परिमाणं खेत्तं पोसणं कालो अंतरं सण्णियासो भावो अप्पा बहुअं चेदि । एत्थ ताव समुत्तिणादी णमेकारसण्हमणियोगद्दाराणमप्पवण्णजित्तादो सुत्तारेण अपरूविदार्णमुच्चारणाणुसारेण परूवणं वत्तइस्सामो । तं जहा
९ ५८. समुक्कित्तणाणुगमेण दुविहो णिदेसो- ओघेण आदेसेण य । ओघेण अस्थि सव्वपयडीणं संकमो । एवं चदुसु गदीसु । णवरि पंचिदियतिरिक्खअपज्ज०
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५५. इसप्रकार गाथासूत्रों के आधारसे प्रकृतिसंक्रमके चार प्रकारके अवतारका कथन करके प्रकृत अर्थका उपसंहार करनेके लिये श्रागेका सूत्र कहते हैं
* यह सूत्रस्पर्श है ।
६ ५६. इसप्रकार यह गाथासूत्रोंके प्रत्येक पदके अर्थका स्पर्श किया यह उक्त कथनका तात्पर्य है । अब पूर्वोक्त इन अ ठ निर्गमोंमेंसे एकैकप्रकृतिसम्बन्धी निर्गमका कथन करने के लिये का सूत्र कहते हैं
-
* एकैकप्रकृतिसंक्रमका प्रकरण है ।
६ ५७. जिसमें एकैकप्रकृतिसंक्रम, प्रकृतिप्रतिग्रह और प्रकृति प्रतिग्रह ये अन्तर्भूत हैं ऐसे एकैकप्रकृतिसंक्रमका प्रकरण है यह उक्त सूत्रका तात्पर्य है । सो इस विषय में चौबीस अनुयोगद्वार हैं । यथा - समुत्कीर्तना, सर्वसंक्रम, नोसर्वसंक्रम, उत्कृष्टसंक्रम, अनुत्कृष्टसंक्रम, जघन्यसंक्रम, अजघन्यसंक्रम, सादिसंक्रम, अनादिसंक्रम, धुत्रसंक्रम, अधुत्रसंक्रम, एक जीव की अपेक्षा स्वामित्व, काल और अन्तर तथा नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचय, भागाभाग, परिमाण, क्षेत्र, स्पर्शन, काल, अन्तर, सन्निकर्ष, भाव और अल्पबहुत्व । इनमेंसे समुत्कीर्तना आदि ग्यारह अनुयोगद्वार अल्प वर्णनीय होनेसे सूत्रकारके द्वारा नहीं कहे गये हैं, अतः उच्चारणाके अनुसार उनका कथन करते हैं। यथा
५८. समुत्कीर्तनानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । प्रोसे मोहनी की सब प्रकृतियोंका संक्रम है । इसीप्रकार चारों गतियों में जानना चाहिये । किन्तु इतनी १. प्रतौ सुत्तारेण परूवदाण- इति पाठः ।
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