Book Title: Kasaypahudam Part 08
Author(s): Gundharacharya, Fulchandra Jain Shastri, Kailashchandra Shastri
Publisher: Bharatiya Digambar Sangh
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गा० २६ ]
संक्रमस्स उवक्कमभेदणिरूवणं $ ५१. कथमेत्थ गाहासुत्तावयवे संबंधविवक्खमकाऊण आहारणिद्देसो कओ त्ति णासंकणिजं, विसयभावस्स विवक्खियत्तादो । पयडिविसओ एक्को संकमो पयडिट्ठाणविसओ अवरो त्ति ।
* 'असंकमो तहा दुविहो त्ति पयडिअसंकमो पयडिहाणसंकमो च ।
५२. असंकमो तहा दुविहो त्ति एत्थ 'पयड़ि-पयडिट्ठाणेसु' त्ति अहियारसंबंधो कायव्यो । तेण पयडिअसंकम-पयडिट्ठाणासंकमाणं' संगहो कओ होइ । .. 'दुविहो पडिग्गहविहि'त्ति पयडिपडिग्गहो पयडिहाणपडिग्गहो च।
६ ५३. एत्थ वि पुव्वं व अहियारसंबंधेण पयदणिग्गमाणं गहणं कायव्वं ।
8 'दुविहो अपडिग्गविही य' त्ति पयडिअपडिग्गहो पयडिहाणअपडिग्गहो च । ५४. एत्थ वि अहियारसंबंधो पुव्वं व । सेसं सुगमं ।
एवमेदे पयडिसंकमस्स अट्ट णिग्गमा परूविदा । ५१. शंका तीसरी गाथासूत्रके 'पयडि' इत्यादि अवयवमें सम्बन्धको विवक्षा किये बिना आधारका निर्देश कैसे किया गया है ?
समाधान-ऐसी आशंका करना ठीक नहीं है, क्योंकि यहाँ पर विषयरूप अर्थ विवक्षित है। आशय यह है कि यहाँ पर आधार अर्थमें सप्तमी विभक्तिका निर्देश नहीं किया है किन्तु विषय अर्थमें सप्तमीका निर्देश किया है। जिससे प्रकृतिविषयक एक संक्रम और प्रकृतिस्थानविषयक दूसरा संक्रम यह अर्थ होता है। - * 'असंकमो तहा दुविहो' इस द्वारा प्रकृतिअसंक्रम और प्रकृतिस्थानअसंक्रम का ग्रहण किया है
६५२ 'असंकमो तहा दुविहो' यहाँ पर 'पयडि-पयडिट्ठाणेसु' इस पदका अधिकारवश सम्बन्ध कर लेना चाहिये जिससे उक्त गाथांशद्वारा प्रकृतिअसंक्रम और प्रकृतिस्थानअसंक्रम इन दोनोका संग्रह किया गया हो जाता है।।
* 'दुविहो पडिग्गहविही' इस द्वारा प्रकृतिप्रतिग्रह और प्रकृतिस्थानप्रतिग्रहका ग्रहण किया है
५३. यहाँपर भी पूर्ववत् अधिकारोंका सम्बन्ध हो जानेसे प्रकृत निर्गमोंका ग्रहण कर लेना चाहिये।
__* दुविहो अपडिग्गहविही य इस द्वारा प्रकृतिअप्रतिग्रह और प्रकृतिस्थानअप्रतिग्रहका ग्रहण किया है। ५४. यहाँपर भी पूर्ववत् अधिकारवश सम्बन्ध कर लेना चाहिये। शेष कथन सुगम है।
इसप्रकार प्रकृतिसंक्रमके ये आठ निर्गम कहे। १. श्रा०प्रतौ तेण पयडिहाणासंकमाणं इति पाठः। २. प्रा०प्रतौ पडिग्गहविहत्ती इति पाठः । ३, श्रा०प्रतौ -णिग्गमाणं कायव्वं इति पाठः ।
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