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चतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-१ (२०) अस्य भाषा ॥ ते मृतक साधुके परिठवनेवाले साधु चैत्यघरमे प्रथम परिहायमान तीन थुइसें चैत्यवंदना करके आचार्यके समीपें "इरियावहियें" पडिक्कमिके अविधि पारिठावणीयांका कायोत्सर्ग करे । मंगलपच्छद्धं० ॥ तद पीछे अन्यत् अपि दो हाय मान कहे, उपाश्रयमें भी जैसेही करना परं चैत्यवंदना न करणी यह कथन बृहत्कल्पके चतुर्थ उद्देशेकी चूर्णीमें है, और बृहत्कल्पकी विशेष चूर्णिमें तथा कल्पबृहद्भाष्यमें तथा आवश्यकवृत्तिकारें अन्यथा व्याख्यान करा है, सो यह है ॥ चैत्यवंदनाके अनंतर अजितशांतिस्तवन कहना जेकर अजितशांतिस्तवन न कहे तो तिस अजितशांतिके स्थानमें अन्यत् हायमान तीन थुइ कहनी, सोइ दिखाते है, ॥ चेइयघरगाहा ॥ चैत्यघरमें जावे तहां चैत्यवंदना करके शांतिके निमित्त अजितशांतिस्तवन कहना, अथवा तीन थुइ परिहायमान कहे तदपीछे आचार्य समीपें आकर अविधिपरिठावणियाका कायोत्सर्ग करना, यह कल्पविशेषचूर्णिके चतुर्थ उद्देसे में कहा है।
तथा चैत्यघर वा उपाश्रयमें आकर के गुरु समीपे अविधि परिठावणियांका कायोत्सर्ग करना और शांतिनिमित्त स्तोत्र कहना ॥१॥ परिहायमान तीन थुइ नियम करके होती है, अजितशांतिस्तवादिक क्रमसें तहां जानना ॥२॥ यह कथन कल्पबृहत् भाष्यमें है ।।
तथा कोइ कहे तिहांही कायोत्सर्ग क्यों नहीं करतें ? गुरु कहते हैं यहां उत्थानादि दोष होते है, तिसके लीये तहांसे आकर चैत्यघरमें जावे, तहां चैत्यवंदना करके, शांतिनिमित्त अजितशांतिस्तवन पढे अथवा हायमान तीन थुइ कहे, तदपीछे आपने स्थान पर आ करके आचार्य समीपे अविधि परिठावणियांका कायोत्सर्ग करे जैसा कथन आवश्यक वृत्तिमें करा है, इहां सामान्य चूर्णीमें तीन थुइसें चैत्यवंदना मृतकसाधुके परठवनेवाले साधुयोंकों
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