________________
२६०
श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२
पीतांबर धारण करते थे यह झूठ ॥५॥
(८) श्रीआत्मारामने स्वलिंग श्री महावीरस्वामी के यतियोंका श्वेत मानोपेत लिंग छोडके अन्य लिंग धारण करा यह झूठ ॥६॥ क्यों कि श्रीआत्मारामजीने ढुंढक लिंग छोडा है,परंतु महावीरस्वामीके यतियोंका लिंग नही छोडा । आचार्य महाराज और जैनमतके शास्त्रोंकी अशातना करनेसें श्रीधनविजयजीकी बुद्धि विपर्यय हुइ मालुम होती है, नही तो ढुंढकलिंगको महावीरस्वामीके यतियोंका लिंग न कहता ॥ पृष्ट ३१ ॥ श्रीधनविजयजीके लिखे मूजब श्री बूटेरायजी महाराजने यह नही लिखा है कि, मेरेमें बिलकुल साधुपणा नही है। किंतु तिस मूजब साधुपणा नही है, अर्थात् जैसा साधुपणा उत्सर्ग मार्गमें कहा है तैसा नही. "हमने स्वयमेव गुरुजीको पूछा था कि, कितनेक अज्ञ लोक कहते है कि, श्री बुद्धिविजयजी महाराज अपने आपकों साधु नही मानते है । यह कहना क्योंकर है ? तब श्री महाराजजीने कहा कि जे कर मैं अपने आपकों साधु न मानूं तो पघडी बांधके दलपतभाई के रसोडेमें जाकर थालीमें न जीमुं ?" इस वास्ते जो कुछ श्रीधनविजयजीने लिखा है सो सर्व ही झूठ है ॥७॥ पृष्ट ३२ में लिखा है कि "मणिविजयादिकनी गुरु परंपरा तो बहु पेढियोथी संयम रहित हती" यह लिखना झूठ ॥८॥ क्यों कि सर्व श्री अहमदावादके श्री संघमें विदित है कि गणि श्री कस्तूरविजयजी और गणि श्री कीर्तिविजयजी, जो कि खंभातके नवाबकी दिवानगीरी छोडके साधु हुए थे । तिनके त्याग वैराग साधुपणाके साथ इस श्रीधनविजयजी मृषा भाषिका लेख महा मिथ्या है. श्रीधनविजयजी तो अपने अनाचारी गृहस्थ तुल्य गुरुके दूषण छिपाने वास्ते महात्मा पुरुषोके भी दूषण लिखता है, क्यों कि व्यभिचारणी स्त्री अपना छिनालपणा छिपानेके वास्ते ऐसी वाचालतासें सती स्त्रीयोंके भी दूषण बोलके उनको भी छिनाल बनाना चाहती है । परंतु तिसकी वाचालतासें
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org