Book Title: Chaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Nareshbhai Navsariwala Mumbai

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Page 379
________________ ३७८ श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२ सुज्ञ जनो ! ऐसे धूलॊका कल्याण किसतरें होवेगा? (६५) और इसने श्रीदेवेंद्रसूरिजीसें लेके श्री विजयसेनसूरि तक सर्व तपगच्छके आचार्योके नाम अपनी पट्टावलिमें लिखने छोडदीए है। यह लेखभी इसने धूर्ततासें लिखा है, ऐसा इसके ही लेख से सिद्ध होता है । क्योंकि, इसने ऐसा विचार करा मलूम होता है कि, जे कर मैं इन आचार्योंके नाम लिखुंगा, तो लोक मुझे ऐसे न कहे कि, श्री देवेंद्रसूरिजीने लघुभाष्य १ धर्मरत्न २ वृंदारुवृत्ति ३ आदि ग्रंथोमें चौथी थुइ करणी लिखी है। १ धर्मघोष अपर नाम धर्मकीर्तिसूरिने संघाचार वृत्तिमें चार थुइ तथा आठ थुइसें चैत्यवंदना करनी लिखी है । २ देवसुंदरसूरिने अपनी रचित तपगच्छ समाचारीमें चार थुइसें प्रतिक्रमणकी आदिमें चैत्यवंदना लीखी है । ३ श्री सोमसुंदरसूरिने तपगच्छ समाचारीमें उपर मुजिब चार थुइसें चैत्यवंदना लिखी है । ४ श्री. मुनिसुंदरसूरिजीके शिष्यने तीन थुइ माननेवालोंका मत संवत् १२५० में स्वाग्रहसें हुआ लिखा है । ५ श्री जयचंद्रसूरिजीने उपर मूजिब प्रतिक्रमणकी आद्यंतमें चार थुइसें चैत्यवंदना लिखी है । ६ श्री रत्नशेखरसूरिजीने भी अपने रचे श्राद्धविध्यादि ग्रंथोमें उपर मूजिब लिखा है। उपर लिखित आचार्योने देवसी प्रतिक्रमणमें श्रुतदेवी क्षेत्रदेवताका कायोत्सर्ग और थुइ कहनी लिखी है। इसी तरें हीरप्रश्न और सेनप्रश्नोमें भी इनकी कल्पित समाचारीकों जूठी करनेवाले लेख है । इनोकों क्यों नही मानते हो? इस वास्ते नही लिखे संभव होते है। (६६) तथा धनविजय पृष्ट ११० में लिखता है कि "व्यवहारभाष्य संघदासगणि कृत एमां त्रण थुइए उत्कृष्ट तथा उत्कृष्ट २ देववंदना कहीछे ते प्रमाणे आत्मारामजी मानता नथी करता पण नथी." यह पाठ व्यवहारभाष्यमें दिखलाओ? ॥ पृष्ट १२१ में लिखता है कि "ललितविस्तरा श्री हरिभद्रसूरि कृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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