Book Title: Chaturtha Stuti Nirnaya Part 1 2
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Nareshbhai Navsariwala Mumbai

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Page 381
________________ ३८० श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२ एमां जिनगृहमां पूजादि विशिष्ट कारणे चार थुइ करवी कही छे." यह लेख मिथ्या है। क्योंकि, ललितविस्तरामें है नहीं। पृष्ट १२६ में लिखता है कि "ललितविस्तरापंजिका श्री मुनिचंद्रसूरिकृत एमां पूजादि विशिष्ट कारणे जिनगृहमां चार थुइ कही छे" यह लेख मिथ्या है। पृष्ट १२७ में भी ऐसा लेख है सो मिथ्या है, तथा वृंदारुवृत्तिका भी ऐसे ही लिखा है, पूजादि विशिष्ट कारणे चार थुइ सो मिथ्या है, पृष्ट १२८ में लिखा है कि "लघुभाष्य श्री देवेंद्रसूरिकृत एमां पूजादि विशिष्ट कारणे चौथी थुइ कही छे" यह भी मिथ्या है । तथा श्राद्धदिनकृत्य वृत्ति बाबत जो लिखा है कि "जिनगृहमां त्रण थुइए तथा पूजादि विशिष्ट कारणे चार थुइए चैत्यवंदना कही छे" सो भी मिथ्या है। ___पृष्ट १३० में लिखा है कि "जिनगृहमां पूजादि उपचारें च्यार थुइ कही छे" यह लेख मिथ्या है। पृष्ट १३० में योगशास्त्र बाबत पृष्ट १३१ में संघाचार भाष्य वृत्ति बाबत इत्यादि यह दोनों लेख लिखे है, तैसे तिनमें जिनगृहमां पूजादि उपचारे चार थुइ कही छे । यह सर्व लेख मिथ्या है । इत्यादि अनेक गप्पां लिख के थोडे दिनोकी महिमा पूजा वास्ते जो इनोने कल्पित पंथ चलाया है, तथा कल्पित पुस्तक बनाया है, इस्से इनका दीर्घसंसार मालूम होता है। जे कर येह अब भी इस मिथ्यामतको छोडके तपगच्छकी समाचारी धार लेवे, और किसी संवेगीकों गुरु कर लेवे, तो अब भी इनोका भद्र कल्याण हो जावे॥ (६७) ।। अथ प्रशस्तिलिख्यते ।। श्रीमद्वीरगणंध ज्ञानोद्योतदिवाकरः ।। पंचमः श्रीसुधर्मेतिभवपाथोधिनाविकः ॥१॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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