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श्रीचतुर्थस्तुतिनिर्णय भाग-२ यद्यपि आवश्यक चूर्णिमें पीछे ईर्यावही पडिक्कमनी कही है, परंतु तिहां साधु समीपे सामायिक करण अनंतर चैत्यवंदन भी करना कहा है। तब तो ईर्यापथिकी प्रतिक्रमणका संबंध सामायिकके साथ ही है ऐसा कैसे जाना जावे ? इस वास्ते चूर्णिगत सामायिक करणेकी सामाचारी अच्छीतरे नही जानी जाती है । यद्यपि योगशास्त्रवृत्ति, श्राद्धदिनकृत्य वृत्ति, आदिमें पीछे ईर्यावही करनी कही है सो भी लेख चूर्णि उपरसें ही है। इस वास्ते तिन ग्रंथोसें भी ईरियावही पीछे करणी यह निर्णय कैसे होवे?
(२९) अब हम श्रीधनविजयजीकों पूछते है कि, तमने जो इस पोथीमें श्रीहीरविजयसूरिजी और श्री विजयसेनसूरिजीके दीये उत्तर रुप ग्रंथोके पाठ अर्थात् हीरप्रश्न-सेनप्रश्नोंके पाठ लिखे है, सो तुमने श्रीहीरविजयसूरिजी और श्रीविजयसेनसूरिजीको सत्यवादी मानके लिखे है कि असत्यवादी मानके जेकर सत्यवादी मानके लिखे है तब तो यह जो लेख तैने इस पोथीमें कितनी जगे लिखा है कि, प्रथम करेमिभंते पीछे ईरियावहिया सो क्या समझके लिखा है ? क्योंकि तुमारे मनमें तो श्रीसेनसूरिजीका कथन सत्य भासन हो रहा है, और पोथीमें तिस्से उलटा लिखके अपने मतके श्रावकांको मिथ्या श्रद्धा करवा रहे हो क्या तुम इन बिचारोंके कोई पूर्व जन्मोके शत्रु हो ? जेकर कहोंगे कि, हम उनोंको मृषावादी मानते है तो फेर कहनाहि क्या रहा? अपनेही पूर्वजोंको मृषावादी ठहराये, तो तुमारेमें वचन सत्यकर मानता हूं. उनोने प्रथम ईरियावही
और पीछे करेमिभंते लिखी है, तैसे ही मैं मानता हुं इस वास्ते सुज्ञजन आपही विचार लेवेंगे कि, श्रीधनविजय-राजेंद्रसूरिजी श्रीचतुर्विध संघ और अपने पूर्वाचार्योके विरोधी है कि, श्रीआत्मारामजी विरोधी है ?
॥प्रश्न ॥ करेमिभंते पहिले वा ईर्यापथिकी पहिले इन दोनो ही वातोमें आप किसको मानते है ?
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